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मगवता सूत्र-श. १६ उ. २ देवेन्द्र की भाषा
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___ प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ-सावज पि जाव अणवज्ज पि भासं भासइ ? ___उत्तर-गोयमा ! जाहे णं सक्के देविंदे देवगया मुहुमकायं
अणिहित्ता णं भासं भासइ ताहे णं सबके देविंदे देवगया सावज्जं भामं भासह, जाहे णं सक्के देविंदे देवराया मुहुमकायं णिजूहित्ता णं भासं भासइ ताहे णं सक्के देविंद देवराया अणवज्ज भासं भासइ, से तेणटेणं जाव भासइ ।
कठिन शब्दार्थ-सावज्ज-सावद्य (पापयुवत) अगवज्ज-निरवद्य (निप्पाप) णिहितामुग्व पर हाथ आदि लगा कर, सुहुमकायं-वस्त्र ।
भावार्थ-८ प्रश्न-हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र क्या सावध (पापयुक्त) भाषा बोलता है या निरवद्य (पाप रहित) भाषा बोलता है ?
८ उत्तर-हे गौतम ! वह सावध भाषा भी बोलता है और निरवद्य भाषा भी बोलता है।
प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा गया कि शकेन्द्र सावध भाषा भी बोलता है और निरवद्य भाषा भी बोलता है ?
उत्तर-हे गौतम ! जब देवेन्द्र देवराज शक्र, सूक्ष्मकाय अर्थात् हाथ अथवा वस्त्र से मुख ढके बिना बोलता है, तब वह सावध भाषा बोलता है । जब वह हाथ अथवा वस्त्र से मुख को ढक कर बोलता है, तब वह निरवद्य भाषा बोलता है । इसलिये ऐसा कहा गया है कि शक्र, सावद्य भाषा भी बोलता है, और निरवद्य भाषा भी बोलता है ।
विवेचन-हाथ अथवा वस्त्र आदि से मुख ढक कर बोलने वाला निरवद्य भाषा बोलता है । क्योंकि उसका वायुकायादि जीवों को बचाने का प्रयत्न होने से वह यत्नापूर्वक बोलता है । उघाड़े मुख (हस्त या वस्त्रादि से मुंह ढके बिना) बोलने वाला सावध भाषा
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