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शतक १६
अहिगरणि जरा कम्मे जावतियं गंगदत्त सुमिणे य । उवओग लोग बलि ओहि दीव उदही दिसा थणिया ।
भावार्थ-सोलहवें शतक में चौदह उद्देशक हैं। पहले उद्देशक में अधिकरणी-एरण आदि विषयक कथन है। दूसरे में जरा आदि अर्थ विषयक । तीसरे में कर्म विषयक कथन है । चौथे उद्देशक के प्रारंभ में 'जावतिय' शब्द होने से इस उद्देशक का नाम 'जावतिय' है। पांचवें उद्देशक में गंगदत्त देव विषयक, छठे में स्वप्न विषयक, सातवें में उपयोग विषयक, आठवें में लोक स्वरूप विषयक, नौवें में बलीन्द्र विषयक, दसवें में अवधिज्ञान विषयक, ग्यारहवें में द्वीपकुमार विषयक, बारहवें में उदधिकुमार विषयक, तेरहवें में दिशाकुमार विषयक और चौदहवें में स्तनितकुमार विषयक कथन हैं।
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