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भगवती सूत्र - १५ गोशालक का भव-भ्रमण
उत्पन्न होगा । वहाँ
पृथ्वी में, उत्कृष्ट स्थिति वाले नरकावासों में, नरयिक रूप से से यावत् निकल कर फिर दूसरी बार मत्स्यों में जन्मेगा । वहाँ पर भी शस्त्र से मारा जा कर यावत् छठी तमः प्रभा पृथ्वी में उत्कृष्ट स्थिति वाले नरकावासों में नैरयिक होगा । वहाँ से यावत् निकल कर स्त्री रूप से उत्पन्न होगा । वहाँ भी शस्त्राघात से मर कर दूसरी बार छठी तमःप्रभा नरक में उत्कृष्ट स्थिति वाले नरकावासों में नैरयिक रूप में उत्पन्न होगा । वहाँ से यावत् निकल कर फिर दूसरी बार स्त्री रूप में उत्पन्न होगा । वहाँ भी शस्त्राघात से मर कर यावत् पांचवीं धूमप्रभा नरक में उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला नैरयिक होगा । वहाँ से यावत् निकल कर उरःपरिसर्पों में उत्पन्न होगा । वहाँ भी शस्त्र द्वारा मारा जाने पर दूसरी बार पांचवीं नरक में उत्पन्न होगा। वहाँ से यावत् निकल कर दूसरी बार फिर उरः परिसर्पों में उत्पन्न होगा । वहाँ से यावत् काल करके चौथी पंकप्रभा नरक में उत्कृष्ट स्थिति वाला नैरयिक होगा । वहाँ से यावत् निकल कर सिंहों में उत्पन्न होगा । वहाँ भी शस्त्र द्वारा मारा जा कर यावत् दूसरी बार चौथी नरक में उत्पन्न होगा । वहाँ से यावत् निकल कर दूसरी बार सिहों में उत्पन्न होगा । वहाँ से यावत् काल कर के तीसरी बालुकाप्रभा नरक में उत्कृष्ट स्थिति वाला नैरयिक होगा । वहाँ से यावत् निकल कर पक्षियों में उत्पन्न होगा। वहां भी शस्त्र से मारा जा कर यावत् काल कर के दूसरी बार तीसरी नरक में उत्पन्न होगा। वहां से यावत् निकल कर दूसरी बार पक्षियों में उत्पन्न होगा। वहां से यावत् काल करके दूसरी शर्कराप्रभा नरक में उत्पन्न होगा । वहां से यावत् निकल कर सरीसृपों में उत्पन्न होगा। वहां भी शस्त्र से मारा जा कर यावत् दूसरी बार शर्कराप्रमा में उत्पन्न होगा। वहां से यावत् निकल कर दूसरी बार सरीसृपों में उत्पन्न होगा। वहां से यावत् काल कर के इस रत्नप्रभा पृथ्वी में उत्कृष्ट स्थिति वाले नरकावासों में उत्पन्न होगा। वहां से यावत् निकल कर संज्ञी जीवों में उत्पन्न होगा। वहां भी शस्त्र द्वारा मारा जा कर यावत् काल कर के असंज्ञी जीवों में उत्पन्न होगा ।
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