________________
२४९०
भगवती सूत्र-श. १५ गोगालक का भव-भ्रमण
वालुयप्पभाए पुढवीए उक्कोसकाल० जाव उव्वट्टित्ता पक्खीसु उववजिहिति । तत्थ वि णं सत्थवज्झे जाव किच्चा दोच्चं पि तचाए वालुय० जाव उव्वट्टित्ता दोच्चं पि पक्खीसु उववजिहिति जाव किच्चा दोचाए सक्करप्पभाए जाव उव्वट्टित्ता सरीसवेसु उववजिहिति । तत्थ वि णं सत्थ० जाव किच्चा दोच्चं पि दोच्चाए सक्करप्पभाए जाव उवट्टित्ता दोच्चं पि सरीसवेसु उववजिहिति, जाव किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसकालद्विइयंसि णरगंसि गेरइयत्ताए उववजिहिति, जाव उव्वट्टित्ता सणीसु उववजिहिति । तत्थ वि णं सत्थवज्झे जाव किच्चा असण्णीसु उववजिहिति । तत्थ वि णं सत्थवज्झे जाव किच्चा दोच्चं पि इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पलिओवमस्स असंखेजइ. भागट्ठिइयंसि णरगंसि णेरड्यत्ताए उववज्जिहिति ।
कठिन शब्दार्थ-सत्थवज्झे-शस्त्रवध्य-शस्त्र से मारा जाने योग्य, दाहवक्कंतीएदाह ज्वर की वेदना से।
भावार्थ-४७ प्रश्न-हे भगवन् ! सुमंगल अनगार के द्वारा घोड़े, रथ और सारथि सहित भस्म किया हुआ विमलवाहन राजा कहाँ जायेगा, कहाँ उत्पन्न होगा?
४७ उत्तर-हे गौतम ! सुमंगल अनगार के द्वारा घोड़े, रथ और सारथि सहित यावत् भस्म किया जाने पर विमलवाहन राजा, अधःसप्तम पृथ्वी में, उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नरकों में नैरयिक प से उत्पन्न होगा। वहाँ से यावत् उद्वर्त कर (निकल कर) मत्स्थों में उत्पन्न , ।। वहाँ शस्त्र के द्वारा वध होने पर दाह ज्वर की पीड़ा से काल कर के मारो बार फिर अधःसप्तम
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org