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भगवती सूत्र-श. १५ गोशालक का भव-भ्रमण
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___ भावार्थ-४६ प्रश्न-हे भगवन् ! सुमंगल अनगार, घोड़े रथ और सारथि सहित विमलवाहन राजा को भस्म का ढेर कर के वे स्वयं काल कर के कहाँ जावेंगे, कहाँ उत्पन्न होंगे ?
४६ उत्तर-हे गौतम ! विमलवाहन राजा को घोड़े, रथ और सारथि सहित भस्म करने के पश्चात् सुमंगल अनगार बेला, तेला, चौला, पचौला यावत् विचित्र प्रकार के तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए बहुत वर्षों तक श्रमण-पर्याय का पालन करेंगे। फिर एक मास की सलेखना से साठ भक्त अनशन का छेदन करेंगे और आलोचना, प्रतिक्रमण कर के समाधिस्थ हो काल करेंगे, वे ऊंचे चन्द्र सूर्य यावत् तीसरे त्रिक के एक सौ ग्रेवेयक विमानावासों का उल्लंघन कर के सर्वार्थ-सिद्ध महाविमान में देवपने उत्पन्न होंगे। वहां देवों की अजयन्यानुत्कृष्ट (जघन्य और उत्कृष्टता से रहित) तेतीस सागरोपम की स्थिति कही गई है। वहां सुमंगल देव की भी परिपूर्ण तेतीस सागरोपम की स्थिति होगी। वहाँ का आयुष्य, भव और स्थिति का क्षय होने पर वहाँ से च्यव कर सुमंगल देव महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होंगे यावत् सभी दुःखों का अन्त करेंगे।
विवेचन-सर्वार्थसिद्ध देवलोक में जघन्य और उत्कृष्ट इस तरह दो प्रकार की स्थिति नहीं है, किन्तु जघन्य और उत्कृष्टता से रहित सभी देवों की तेतीस सागरोपम की स्थिति होती है।
गोशालक का भव-भ्रमण
. ४७ प्रश्न-विमलवाहणे णं भंते ! राया सुमंगलेणं अणगारेणं सहए जाव भासरासीकए समाणे कहिं गच्छिहिति, कहिं उववजि. हिति ?
४७ उत्तर-गोयमा ! विमलवाहणे णे राया सुमंगलेणं अण
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