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भगवती सूत्र-श.:१३ उ. १ नरकावासों की सध्या विस्तादि
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कठिन शब्दार्थ-केवइया-कितने, पणवीस-पच्चीस, महतिमहालया-अत्यंत बड़े ।
भावार्थ-८ प्रश्न-हे भगवन् ! शर्कराप्रभा पृथ्वी में कितने नरकावास कहे गये हैं, इत्यादि प्रश्न ।
८ उत्तर-हे गौतम ! पच्चीस लाख नरकावास कहे गये हैं।
प्रश्न-हे भगवन् ! वे नरकावास क्या संख्यात योजन विस्तार वाले हैं या असंख्यात योजन विस्तार वाले ?
उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार रत्नप्रभा पृथ्वी के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार शर्कराप्रभा के विषय में भी कहना चाहिये । परन्तु उत्पाद, उद्वर्तना और सत्ता, इन तीनों ही आलापकों में 'असंजी' नहीं कहना चाहिये । शेष सभी कथन पूर्व की तरह कहना चाहिये ।
९ प्रश्न-हे भगवन् ! बालुकाप्रभा पृथ्वी में कितने नरकावास कहे गये हैं ? इत्यादि प्रश्न ?
९ उत्तर-हे गौतम ! बालुकाप्रभा में पन्द्रह लाख नरकावास कहे गये हैं। शेष सभी कथन शर्कराप्रभा के समान कहना चाहिये। यहाँ लेश्या के विषय में विशेषता है। लेश्या का कथन प्रथम शतक के दूसरे उद्देशक के समान कहना चाहिये।
___ १० प्रश्न-हे भगवन् ! पंकप्रभा पृथ्वी में कितने नरकावास कहे गये है, इत्यादि प्रश्न ।
१० उत्तर-हे गौतम ! दस लाख नरकावास कहे गये हैं। जिस प्रकार शर्कराप्रभा पृथ्वी के विषय में कहा है, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिये । विशेषता यह है कि यहाँ से अवधिज्ञानी और अवधिदर्शनी नहीं उद्वर्तते । शेष सभी-कथन पूर्व के समान जानना चाहिये ।
११ प्रश्न-हे भगवन् ! धूमप्रभा पृथ्वी में कितने नरकावास कहे गये हैं, इत्यादि प्रश्न ।
११ उत्तर-हे गौतम ! तीन लाख नरकावास कहे गये हैं। जिस प्रकार पंकप्रभा के विषय में कहा, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चहिये ।
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