________________
भगवती सूत्र - श. १५ गोशालक का आगमन और दाम्भिक प्रलाप
वीर स्वामी की आज्ञा प्राप्त कर मैं श्रावस्ती नगरी में इत्यादि वर्णन । हे आर्यो ! आप कोई भी गोशालक के साथ उसके मत के प्रतिकूल धर्म-चर्चा मत करना यावत् उसने श्रमण-निर्ग्रन्थों के साथ विशेषतः अनार्यपन धारण किया है ।
२४१८
विवेचन - स्वयं धर्म में स्थिर रहते हुए जो दूसरे माधुओं को धर्म में स्थिर करे. वे 'स्थविर' कहलाते हैं । उनके तीन भेद हैं - ५ वय स्थविर-साठ वर्ष की अवस्था के साधु, २ सूत्र स्थविर स्थानांग और समवायांग सूत्र के ज्ञाता और ३ प्रत्रज्या स्थविर-वीस वर्ष की दीक्षा पर्याय वाले ।
गोशालक का आगमन और दाम्भिक प्रलाप
१३ - जावं च णं आणंदे थेरे गोयमाईणं समणाणं णिग्गंथाणं - एयमहं परिकहेइ तावं च णं से गोमाले मंखलिपुत्ते हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणाओ पडिणिक्खमइ. पडिणिक्खमित्ता आजीवियसंघ संपरिवुडे महया अमरिसं वहमाणे सिग्घं तुरियं जाव सावत्थि णयरिं मज्झमज्झेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता जेणेव कोट्टए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छ्छ, तेणेव उवागच्छत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते टिच्चा समणं भगवं महावीरं एवं वयासी- 'सुछु णं आउसो कासवा ! ममं एवं वयासी, साहूणं आउसो कोसवा ! ममं एवं वयासी - गोसाले मंखलिपुत्ते ममं धम्मंतेवासी, गोसाले ० २, जेणं से मंखलिपुत्ते तव धम्मंतेवासी से णं सुक्के सुकाभिजाइए भवित्ता कालमासे
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org