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. भगवती सूत्र-न. १. श्रमणों को मौन रहने की सूचना .
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से एक ही प्रहार में कूटाघात के समान जलाकर भस्म करने में प्रभु (समर्थ) है ? हे भगवन् ! मंखलिपुत्र गोशालक का यह यावत् विषय मात्र है या वह ऐसा करने में समर्थ है ?
११ उत्तर-हे आनन्द ! मंखलिपुत्र गोशालक अपने तप-तेज से यावत भस्म करने में प्रभु (समर्थ) है । हे आनन्द ! मंखलिपुत्र गोशालक का यावत यह विषय है । हे आनन्द ! वह ऐसा करने में समर्थ है, परन्तु अरिहन्त भगवान को जलाकर भस्म करने में समर्थ नहीं है, तथापि उनको परिताप उत्पन्न करने में समर्थ है । हे आनन्द ! गोशालक का जितना तप-तेज है, उससे अननार भगवन्तों का तप-तेज अनन्त गुण विशिष्ट है, किन्तु अनगार भगवन्त क्षान्तिक्षम (क्षमा करने में समर्थ) हैं । हे आनन्द ! अनगार भगवन्तों का जितना तपतेज है, उससे अनन्त गुण विशिष्ट तप-तेज स्थविर भगवन्तों का है, किन्तु स्थविर भगवन्त क्षान्ति-क्षम होते हैं । हे आनन्द ! स्थविर भगवन्तों का जितना तप-तेज होता है, उससे अनन्त गुण विशिष्ट तप-तेज अरिहंत भगवन्तों का होता है, किन्तु अरिहन्त भगवन्त क्षान्तिक्षम होते हैं। हे आनन्द ! मखलिपुत्र गोशालक अपने तप-तेज द्वारा यावत् भस्म करने में प्रभु (समर्थ) है। यह उसका विषय (शक्ति) है और वह वैसा करने में समर्थ भी है । परन्तु अरिहंत भगवन्तों को भस्म करने में समर्थ नहीं है, केवल परिताप उत्पन्न कर सकता है।
विवेचन-प्रभुत्व दो प्रकार है-विषय मात्र की अपेक्षा और सम्प्राप्ति रूप अर्थात् कार्य रूप में परिणत कर देने की अपेक्षा । इसीलिये यहाँ मूल पाठ में विषय की अपेक्षा से और सामर्थ्य की अपेक्षा से पुनः प्रश्न किया गया है।
श्रमणों को मौन रहने की सूचना
१२ -तं गच्छ णं तुम आणंदा! गोयमाईणं समणाणं णिग्गंथाणं एयमटुं परिकहेहि-'मा णं अजो! तुम्भं केइ गोसालं मंखलिपुत्तं
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