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भगवती सूत्र . १५ गोपालक का पृथक होना
तणं मे गोमाले मंखलिपुत्ते ममं एवमाइक्खमाणम्स, जाव परूवेमाणस्स एयमहं णो महइ ३, एयमहं असद्दहमाणे जाव अरोपमाणे जेणेव से तिलथंभए तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता ताओ निलयं भयाओ तं तिलसंगलियं खड्इ, खुड़िता करयलंसि सत्त तिले पप्फोडे । तएणं तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स ते सत्त तिले गणमाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुपजित्था - ' एवं खलु सव्वजीवा वि पउट्टपरिहारं परिहरति ' - एस णं गोयमा ! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स पट्टे एस णं गोयमा ! गोसालस मंखलिपुत्तस्स ममं अंतियाओ आयाए अवक्रमणे पण्णत्ते ।
कठिन शब्दार्थ - खुड्डुइ-तोड़ देता है, पउट्टे परिवर्तन, अवक्कमणे - अपक्रमण ( पृथक्
होना ) |
भावार्थ- गोशालक ने मेरे इस कथन की श्रद्धा, प्रतीति एवं रुचि नहीं की, यावत् उस तिल के पौधे के पास जा कर उसकी तिलफली को तोड़ कर और हाथ में मसल कर सात तिल बाहर निकाले । इसके बाद मंखलिपुत्र गोशालक को सात तिलों की गिनती करते हुए इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ'सभी जीव प्रवृत्तपरिहार करते हैं, अर्थात् मर कर उसी शरीर में पुनः उत्पन्न हो जाते हैं ।' हे गौतम ! मंखलिपुत्र गोशालक का यह 'परिवर्त परिहार वाद' है । हे गौतम! मुझ से ( तेजोलेश्या की विधि प्राप्त करने के बाद) मंखलिपुत्र गोशालक का यह अपक्रमण है अर्थात् वह मुझ से पृथक् हुआ है ।
२:९९
विवेचन - वनस्पतिकाय के जीव बार-बार मर कर पुन: उसी शरीर में उत्पन्न हो जाते हैं | इसको 'वनस्पतिकायिक परिवर्त परिहार' कहते हैं । गौशालक सभी जीवों के लिए 'परिवर्त परिहार' मानने लग गया। यह उसकी मिथ्या मान्यता है ।
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