________________
भगवती सूत्र-स. १५ तजा लण्या क. प्रहार से गाशालक की रक्षा
१५
इस प्रकार कहा कि हे गोशालक ! तूने वैश्यायन बालतपस्वी को देखा और मेरे पास से हट कर धीरे-धीरे वहाँ गया। फिर तूने वैश्यायन बाल-तपस्वी से इस प्रकार कहा-"तू ज्ञाततत्त्व मुनि है अथवा जुओं का शय्यातर है ?" वैश्यायन ने तेरे इस कथन का आदर-स्वीकार नहीं किया और मौन रहा । इस के बाद तूने उसे दूसरी और तीसरी बार भी इसी प्रकार कहा, तब वह वैश्यायन बालतपस्वी कुपित हुआ यावत् तेरा वध करने के लिये अपने शरीर में से तेजो-लेश्या बाहर निकाली। उस समय मैने तुझ पर अनुकम्पा करके वंश्यायन बाल-तपस्वी की तेजोलेश्या का प्रति संहरण करने के लिये शीत-तेजोलेश्या निकाली यावत् उससे उसकी उष्ण तेजोलेश्या का प्रतिघात हुआ और तेरे शरीर को कुछ भी पीड़ा नहीं हई जानकर अपनी उष्णतेजोलेश्या को पीछा खींच लिया। फिर उसने मुझे इस प्रकार कहा-" हे भगवन् मैंने जाना । हे भगवन् ! मैंने जाना ।"
तएणं से गोसाले मंसलिपुत्ते ममं अंतियाओ पयमढें सोचा, णिसम्म भीए जाव संजायभए ममं वंदइ णमंसइ, ममं वंदित्ता णमं. सित्ता एवं वयासी-'कहं णं भंते ! संखित्तविउल-तेयलेस्से भवई' ? तएणं अहं गोयमा ! गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासी-जेणं गोसाला! एगाए सणहाए कुम्मासपिंडियाए एगेण य वियडासएणं छटुंछटेणं अणिक्खितेणं तवोकम्मेणं उड्ढे वाहाओ पगिझिय पगिज्झिय जाव विहरइ, से गं अंतो छण्हं मासाणं संखित्तविउलतेयलेस्से भवइ ।' तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एयमटुं सम्मं विणएणं पडिसुणेइ ।
कठिन शब्दार्थ-भीए-डरा, सणहाए- नख सहित, एगेण य वियडासएणं-विकटाशय (चुल्लूभर पानी)।
भावार्थ-इसके बाद हे गौतम ! मेरी उपरोक्त बात सुन कर गोशालक
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org