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भगवती सूत्र - १४ उ. १० केवली और सिद्ध का ज्ञान
पृथ्वी' इस प्रकार जानते-देखते हैं ।
९ उत्तर-पूर्वोक्त रूप से, यावत् अधः सप्तम तक जानना चाहिये । १० प्रश्न - हे भगवन् ! केवलज्ञानी, सौधर्म कल्प को जानते-देखते हैं ? १० उत्तर - हाँ, गौतम ! जानते देखते हैं । इसी प्रकार ईशान यावत् अच्युत कल्प तक कहना चाहिये ।
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११ प्रश्न - हे भगवन् ! केवलज्ञानी, ग्रेवेयक विमानों को जानते-देखते हैं ? ११ उत्तर-पूर्वोक्त रूप से यावत् अनुत्तर विमान तक जानना चाहिए । १२ प्रश्न - हे भगवन् ! केवलज्ञानी, ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी को जानते-देखते
१२ उत्तर - हे गौतम ! पूर्वोक्त रूप से जानना चाहिये ।
१३ प्रश्न - हे भगवन् ! केवलज्ञानी, परमाणु पुद्गल को जानते-देखते है ? १३ उत्तरर- हाँ, गौतम ! जानते देखते हैं। इस प्रकार द्विप्रदेशी स्कन्ध यावत्प्रश्न - हे भगवन् ! जिस प्रकार केवलज्ञानी, अनंत प्रदेशिक स्कंध को जानते-देखते है, उसी प्रकार सिद्ध भी अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध को यावत् जानतेदेखते हैं ?
उत्तर - हाँ, गौतम ! जानते देखते हैं ।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
विवेचन - यहाँ 'केवली' शब्द से 'भवस्य केवली' का ग्रहण करना चाहिये । क्योंकि 'सिद्ध' के विषय में पृथक् प्रश्न किया गया है । 'भासेज्ज' का अर्थ बिना पूछे ही बोलते और 'वागरेज्ज' का अर्थ- प्रश्न पूछने पर उत्तर देते हैं ।
|| चौदहवें शतक का दसवाँ उद्देशक सम्पूर्ण ॥
|| चौदहवाँ शतक सम्पूर्ण ॥
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