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________________ २३६६ भगवती सूत्र-श. १४ उ. १० केवली और सिद्ध का ज्ञान १३ उत्तर-एवं चेव, एवं दुपएसियं खंधं, एवं जाव प्रश्न-जहा णं भंते ! केवली अणंतपएसियं खं, अणंतपएसिए खंधेत्ति जाणई पासइ, तहा णं सिधे वि अणंत्तपएसियं जाव पासइ ? उत्तर-हंता जाणइ पासइ। * सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति ॥ चोदसमसए दसमो उद्देसो समत्तो ॥ ॥ चोदसमं सयं समत्तं ।। कठिन शब्दार्थ-उम्मिसेज्ज-आँख खोलना, णिम्मिसेज्ज-ऑग्व मीचना । भावार्थ-६ प्रश्न-हे भगवन् ! केवलज्ञानी अपनी आँखें खोलते और मीचते हैं ? ६ उत्तर-हाँ, गौतम ! वे आँखें खोलते और मोचते हैं। इसी प्रकार शरीर को संकुचित-विस्तृत करते हैं, खड़े रहते है, बैठते हैं तथा शय्या (वसति) और नषेधिकी (थोड़े समय के लिये वसति) करते हैं। ७ प्रश्न-हे भगवन् ! केवलज्ञानी, रत्नप्रमा पृथ्वी को-'यह रत्नप्रभा पृथ्वी है'-इस प्रकार जानते-देखते हैं? ७ उत्तर-हाँ गौतम ! जानते-देखते हैं। ८ प्रश्न-हे भगवन् ! जिस प्रकार केवलज्ञानी, रत्नप्रभा पृथ्वी को 'यह रत्नप्रभा पृथ्वी है'- इस प्रकार जानते-देखते हैं, उसी प्रकार सिद्ध भी रत्नप्रभा पृथ्वी को-'रत्नप्रभा पृथ्वी है'-इस प्रकार जानते-देखते हैं ? ८ उत्तर-हाँ गौतम ! जानते-देखते हैं। ९ प्रश्न-हे भगवन् ! केवलज्ञानी, शर्कराप्रभा पृथ्वी को-'शकंराप्रभा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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