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________________ २३६४ भगवती सूत्र-श. १४ उ. १० केवली और सिद्ध का ज्ञान ३ उत्तर-हाँ गौतम ! जानते-देखते हैं ? इसी प्रकार परमावधिज्ञानी, केवलज्ञानी और सिद्ध को भी जानते-देखते है। प्रश्न-हे भगवन् ! जिस प्रकार केवलज्ञानी, सिद्ध को जानते-देखते हैं, उसी प्रकार सिद्ध भी सिद्धों को जानते-देखते हैं ? उत्तर-हाँ, जानते-देखते हैं। ४ प्रश्न-हे भगवन् ! केवलज्ञानी बोलते हैं और प्रश्न का उत्तर देते हैं ? ४ उत्तर-हाँ गौतम! केवलज्ञानी बोलते हैं और प्रश्न का उत्तर देते हैं। ५ प्रश्न-हे भगवन् ! जिस प्रकार केवलज्ञानी बोलते हैं और प्रश्न का उत्तर देते हैं, उसी प्रकार क्या सिद्ध भी बोलते हैं और प्रश्न का उत्तर देते हैं ? ५ उत्तर-यह अर्थ समर्थ नहीं। प्रश्न-हे भगवन्! सिद्ध क्यों नहीं बोलते ? उत्तर-हे गौतम ! केललज्ञानी उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार, पराक्रम सहित हैं, परन्तु सिद्ध उत्थान रहित यावत् पुरुषकारपराक्रम से रहित हैं, इस कारण सिद्ध, केवलज्ञानी के समान नहीं बोलते और न प्रश्न का उत्तर ही देते हैं। ६ प्रश्न-केवली णं भंते ! उम्मिसेज वा णिम्मिसेज वा ? ६ उत्तर-हंता उम्मिसेज वा णिम्मिसेज वा एवं चेव एवं आउंटेज वा पसारेज वा, एवं ठाणं वा सेजं वा णिसीहियं वा चेएजा । ___७ प्रश्न-केवली णं भंते ! इमं रयणप्पभं पुढविं रयणप्पभा. पुढविइ जाणइ पासइ ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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