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________________ शतक १३ उद्देशक ९ नरकावासों की संख्या विस्तरादि २ प्रश्न - रायगिहे जाव एवं वयासी कह णं मंते पुढवीओ पण्णत्ताओ ? २ उत्तर - गोयमा ! सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ, तं जहा१ रयणप्पभा जाव ७ अहेमुत्तमा । ३ प्रश्न - इमी से णं भंते! रयणप्पभाष पुढवीए केवइया णिरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता ? ३ उत्तर - गोयमा ! तीसं णिरयावासमा पण्णत्ता । प्रश्न- ते णं भंते! किं संखेजवित्थडा, असंखेजवित्थडा ? उत्तर - गोयमा ! संखेनवित्थडा वि असंखेजवित्वा वि । कठिन शब्दार्थ-संखेज्ज वित्थडा - नस्य विस्तृत, असंज्ज वित्थडा असंख्येय विस्तृत | भावार्थ - २ प्रश्न - राजगृह नगर में गौतनस्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा- हे भगवन् ! नरक पृथ्वियाँ कितनी कही गई हैं ? २ उत्तर - हे गौतम! नरक पृथ्वियाँ सात कही गई हैं। यथा-रत्नप्रभा, यावत् अधः सप्तम पृथ्वी ३ प्रश्न - हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितने लाख नरकावास कहे गये हैं ? ३ उत्तर - हे गौतम ! तीस लाख नरकावास कहे गये हैं । प्रश्न - हे भगवन् ! क्या वे नरकावास संख्येय विस्तृत ( संख्यात योजन विस्तार वाले ) हैं या असंख्येय विस्तृत है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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