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णमोत्थुणं समणस्स भगया महावीरस्स
गणधर भगवत्सुधर्मस्वामि प्रणीत
भगवती सूत्र
शतक १३
गाहा-१ १ पुढवी २ देव ३ मणंतर ४ पुढवी ५ आहारमेव ६ उववाए । ७ भासा ८ कम्म ९ अणगारे केयाघडिया १० समुग्घाए । कठिन शब्दार्थ--केयाघडिया--रस्सी से बंधी हुई घटिका-छोटा घड़ा ।
भावार्थ--तेरहवें शतक में दस उद्देशक हैं। उनमें से पहले उद्देशक में नरक पृथ्वियों का वर्णन किया गया है। दूसरे उद्देशक में देवों सम्बन्धी प्ररूपणा की गई है। तीसरे उद्देशक में नैरयिक जीव सम्बन्धी अनन्तराहारक आदि की प्ररूपणा की गई है। चौथे उद्देशक में पृथ्वीगत वक्तव्यता है। पांचवें उद्देशक में नैरयिक आदि के आहार की प्ररूपणा की गई है। छठे उद्देशक में नैरयिक आदि के उपपात सम्बन्धी कथन किया गया है। सातवें उद्देशक में भाषा आदि का कथन किया गया है। आठवें उद्देशक में कर्म-प्रकृतियों की प्ररूपणा की गई है । नौवें उद्देशक में क्या भावितात्मा अनगार लब्धि-सामर्थ्य से रस्सी से बंधी हुई घड़ली को हाथ में लेकर आकाश में गमन कर सकता है, इत्यादि विषय का कथन किया गया है और दसवें उद्देशक में समुद्घात का प्रतिपादन किया गया है।
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