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भगवती मूत्र-स. १८ उ. १ नैरयिक अनंतरोपपन्नकादि
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७ उत्तर-हे गौतम ! वे नरयिक का आयुष्य नहीं बाँधते, तिर्यच या मनुष्य का आयुष्य बांधते हैं । देवता का आयुप्य भी नहीं बांधते ।
८ प्रश्न-हे भगवन् ! अनन्तरपरम्परानुपपन्नक नरयिक, नरयिक का आयुष्य बांधते हैं, इत्यादि प्रश्न ।
८ उत्तर-हे गौतम ! वे नैयिक यावत् देव में से किसी का भी आयुष्य नहीं बांधते । इसी प्रकार. यावत् वैमानिकों तक कहना चाहिये । विशेषता यह है कि परम्परोपपन्नक पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक और मनुष्य, चारों प्रकार का आयुष्य बांधते है । शेष सभी पूर्ववत् कहना चाहिये।
विवेचन-जिनकी उत्पत्ति में मम्य आदि का अन्तर नहीं है, अर्थात् जिनकी उत्पत्ति का प्रथम समय ही है, वे 'अनन्तरोपपन्नक' कहलाते हैं। जिनको उत्पन्न हुए दो, तीन आदि समय हो गये हैं, उन्हें परम्परोपपन्नक' कहते हैं । जिनकी अनन्तर और परम्पर यह दोनों प्रकार की उत्पनि नहीं-से विग्रहगति समापनक जीव 'अनन्नरपरम्परानुपपन्नक' कहलाते हैं, क्योंकि अनन्तरोत्पत्ति भव के उत्पत्ति क्षेत्र के प्रथम समय में होती है, परम्परोत्पत्ति द्वितीयादि समय में होती है और विग्रहगति में दोनों प्रकार की उत्पत्ति का अभाव है।
अनन्त रोपपन्नक और अनन्तर-परम्परानुपपन्नक जीव, नरकादि चारों गतियों का आयुष्य नहीं बांधत । क्योंकि उस अवस्था में उस प्रकार के अध्यवसाय नहीं होते हैं। इसलिये उस समय चारों गति के जीवों के आयुप्य का बन्ध नहीं होता । परम्परोपपन्नक नैरयिक जीव, अपना आयुप्य छह मास शेष रहने पर, भवप्रत्यय से तिर्यञ्च अथवा मनुष्य के आयुष्य का बंध करते हैं। इसी प्रकार देवों के विषय में भी जानना चाहिये । परम्परोपपन्नक मनुष्य और तिर्यञ्च तो चारों ही गति का आयुष्य बांधते हैं । अपनी आयुष्य के तृतीयादि भाग में या कोई-कोई छह मास बाकी रहते आयुष्य बांधते हैं ।
- यहां टीकाकार ने मतान्तर देते हुए बतलाया है कि नरयिक और देव, उत्कृष्ट छह माम और जघन्य अन्तर्मुहूर्त आयुष्य शेष रहने पर भी अगले भव का आयुष्य बांध सकते हैं, किन्तु यह बात प्रज्ञापना सूत्र के छठे पद के मूलपाठ से विरुद्ध जाती है। वहां बतलाया गया है कि नारक और देव छह मास का आयुष्य शेष रहने पर नियमतः पर-भव का आयुष्य बांध लेते हैं।
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