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भगवती सूत्र-स. १४ ३. १ नरयिा. अननरोपपन्नकादि
८ उत्तर-णो णेरइयाउयं पकरेंति, जाव णो देवाउयं पकौँति, एवं जाव वेमाणिया, णवरं पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा य परंपरोक्वण्णगा चत्तारि वि आउयाइं पकरेंति, सेसं तं चेव। .
कठिन शब्दार्थ--अणुववण्णगा-अनुपपन्नक-उत्पन्न नहीं होने वाले । ___ भावार्थ-५ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिक अनन्तरोपपन्नक है, परम्परोपपन्नक हैं अथवा अनन्तपरम्परानुपपन्नक हैं ? .
___५ उत्तर-हे गौतम ! नैरयिक अनन्तरोपपन्नक भी हैं, परम्परोपपन्नक भी हैं और अनन्तर-परम्परानुपपन्नक हैं ?
प्रश्न-हे भगवन् ! इस विविधता का क्या कारण है ?
उत्तर-हे गौतम ! जिन नैरयिकों को उत्पन्न हए अभी प्रथम समय हो हआ है, (उत्पत्ति में एक समयादि का अन्तर नहीं पड़ा) उनको अनन्तरोपपन्नक कहते हैं ? जिन नरयिकों को उत्पन्न हुए दो, तीन आदि समय हो गये हैं (प्रथम समय के सिवाय द्वितीयादि समय हो गये हैं) उन्हे ‘परम्परोपपन्नक' कहते हैं और जो नैरयिक जीव, नरक में उत्पन्न होने के लिये विग्रहगति में चल रहे हैं, उनको 'अनन्तरपरम्परानुपपन्नक' कहते है। इस कारण हे गौतम ! नैरथिक जीव यावत् अनन्तरपरम्परानुपपन्नक हैं। इस प्रकार निरन्तर यावत् वैमानिक तक कहना चाहिये।
६ प्रश्न-हे भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक नरयिक, नैरयिक का आयुष्य बांधते हैं, तिथंच का आयुष्य बांधते हैं, मनुष्य का आयुष्य बांधते हैं या देव का आयुष्य बांधते हैं ?
६ उत्तर-हे गौतम ! वे नैरयिक का आयुष्य नहीं बांधते यावत् देव का आयुष्य भी नहीं बांधते ।
७प्रश्न-हे भगवन् ! परम्परोपपन्नक नरयिक, नैरयिक का आयुष्य बांधते हैं, यावत् देव का आयुष्य बांधते हैं ?
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