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शतक १४ उद्देशक १
चरम-परम के मध्य की गति
२ प्रश्न-रायगिहे जाव एवं वयासी-अणगारे णं भंते ! भावियप्पा चरमं देवावासं वीइक्कते, परमं देवावासमसंपत्ते, एत्थ णं अंतरा कालं करेजा, तस्स णं भंते ! कहि गई, कहिं उववाए पण्णत्ते ?
२ उत्तर-गोयमा ! जे से तत्थ परियस्सओ तल्लेसा देवावासा तहिं तस्स गई तहिं तस्स उववाए पण्णत्ते। से य तत्थ गए विराहेजा, कम्मलेस्सामेव पडिपडइ, से य तत्थ गए णो विराहेजा, तामेव लेस्सं उवसंपजित्ता णं विहरइ।
३ प्रश्न-अणगारे णं भंते ! भावियप्पा चरमं असुरकुमारावासं वीइक्कते, परमं असुर० ?
३ उत्तर-एवं चेव, एवं जाव थणियकुमारावासं जोइसियावासं, एवं वेमाणियावासं, जाव विहरह ।
कठिन शब्दार्थ-पडिपडइ-गिरता है, विराहेज्जा-विराधे । .. .
भावार्थ-२ प्रश्न-राजगृह नगर में गौतमस्वामी ने इस प्रकार पूछाहे भगवन् ! कोई भावितात्मा अनगार-जिसने चरम (पूर्ववर्ती) सौधर्मादि देवलोक का उल्लंघन कर दिया और परम (परभागवर्ती) सनत्कुमारादि देवलोक को प्राप्त नहीं हुआ, इस मध्य में ही यदि वह काल कर जाय, तो उसकी कौनसी गति होती है ? कहाँ उपपात होता है ?
२ उत्तर-हे गौतम ! चरम देवावास और परम देवावास के निकट उस
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