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________________ भगवती मूत्र--ग. १: उ. १ अनगार की वैकिय-मान कठिन शब्दार्थ-वगली-चमगादड़ पक्षी, उल्लंबिया-ऊपर पकड़ कर, बीयंबीयगमउणे-बीजबीजक पक्षी, पक्खि विरालए-विडालक पक्षी, डेवेमाणे-जाते हुए, जलोयाजलाका, समतुरंगेमाणे-घोड़े के समान एक साथ पर उठाते हुए। ४ प्रश्न-हे भगवन् ! जैसे कोई बागुलपक्षिणी (चमगादड़) अपने दोनों पर वृक्षादि में ऊंचे लगा कर (ऊँचे पैर और नीचे सिर लटका कर) रहती है, उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी बागुली को तरह विकुर्वणा करके स्वयं ऊँचे आकाश में उड़ सकता है ? ४ उत्तर-हां, गौतम ! उड़ सकता है। इस प्रकार यहाँ पर यज्ञोपवीत की वक्तव्यता तीसरे शतक के पांचवें उद्देशक के समान कहनी चाहिये अर्थात जैसे कोई ब्राह्मण गले में जनेऊ डालकर गमन करता है, उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी वैसे रूप की दिकुर्वणा कर सकता है, यावत् सम्प्राप्ति द्वारा विकुर्वेगे नहीं-तक कहना चाहिये। __ ५ प्रश्न-हे भगवन् ! जिस प्रकार कोई जलोक (पानी में रहने वाला बेइंद्रिय जीव) अपने शरीर से पानी को प्रेरित करकै गमन करती है, उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी वैसे रूप को विकुर्वणा करके आकाश में उड़ सकता है। ५ उत्तर-हे गौतम ! यह सभी वर्णन बागुली के समान जानना चाहिये । ६ प्रश्न-हे भगवन् ! जैसे कोई एक बीजबीजक पक्षी, अपने दोनों पैरों को घोड़े की तरह एक साथ उठाता हुआ गमन करता है, उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी वैसे रूपों को विकुर्वणा करके आकाश में उड़ सकता है ? ६ उत्तर-हां, गौतम ! उड़ सकता है। शेष सभी पूर्ववत् जानना चाहिये। ७ प्रश्न-हे भगवन् ! जिस प्रकार कोई बिलाडक पक्षी, एक वृक्ष से दूसरे वक्ष पर और दूसरे से तीसरे पर, गमन करता है, क्या भावितात्मा अनगार भी उस प्रकार के रूप की विकुर्वणा करके आकाश में उड़ सकता है ? ७ उत्तर-हाँ, गौतम ! उड़ सकता है। शेष सभी पूर्ववत् जानना चाहिये। ८ प्रश्न- भगवन् ! जैसे कोई एक जीवंजीवक नामक पक्षी अपने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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