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________________ भगवती मत्र-श. १? 3. यु के विविध प्रकार २२५७ २२ प्रश्न-हे भगवन ! नरयिक क्षेत्रावीनिकमरण 'नरयिक क्षेत्रावीचिक मरण' क्यों कहलाता है ? २२ उत्तर-हे गौतम ! नैरयिक क्षेत्र में रहे हुए नरयिक जीव ने जिन द्रव्यों को स्वयं नैरयिक आयष्यपने ग्रहण किये हैं, यावत उन द्रव्यों को प्रति समय निरन्तर छोड़ते हैं, इत्यादि द्रव्यावीचिक मरण के समान यहां भी कहना चाहिये । इसलिये हे गौतम ! नैरयिक क्षेत्रावीचिकमरण, 'नरयिक क्षेत्रावीचिकमरण' कहलाता है । इसी प्रकार यावत् (कालावीचिकमरण, भवावीचिकमरण) भावावीचिक मरण तक कहना चाहिये । २३ प्रश्न-ओहिमरणे णं भते . काविहे पण्णत्ते ? २३ उत्तर-गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा--१ दव्वोहिमरणे, २ खेतोहिमरणे, जाव ५ भावोहिमरणे । २४ प्रश्न-दबोहिमरणे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? २४ उत्तर-गोयमा ! चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-१ णेरइयदव्वो. हिमरणे जाव ४ देवदव्वोहिमरणे । __२५ प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ-णेरइयदव्बोहिमरणे णेरड्यदव्वोहिमरणे ? - २५ उत्तर-गोयमा ! जण्णं णेरड्या णेरड्यदव्वे वट्टमाणा जाई दव्वाइं संपयं मरंति, तेणं णेरड्या ताई दव्वाइं अणागए काले पुणो वि मरिसंति, से तेणटेणं गोयमा ! जाव दब्बोहिमरणे । एवं तिरिक्खजोणिय, मणुस्स०, देवदन्दोहिमरणे वि। एवं एएणं गमेणं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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