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________________ भगवती सूत्रा १३ उ. ७ भाषां जीव या अजीव ? सिद्ध होगा यावत् सभी दुःखों का अन्त करेगा । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं । विवेचन यद्यपि अभीचिकुमार, जीवाजीवादि तत्वों का ज्ञाता श्रमणोपासक था, तथापि उदायन राजपि के प्रति उसका वैरभाव शान्त नहीं हुआ । उसकी आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना ही वह कालधर्म को प्राप्त हो गया। इससे वह असुरकुमार देवों में उत्पन्न हुआ । मूलपाठ में असुरकुमार देवों के प्रसंग में 'आयाव' शब्द आया है। इससे 'आयाव' विशेष अथवा 'आताप' विशेष अनुरकुमार जाति के देव समझना चाहिये । रत्नप्रभा पृथ्वी के नरकावासों के पास इनके आवास हैं । ।। तेरहवें शतक का छठा उद्देशक सम्पूर्ण ॥ Jain Education International अण्णा भासा ? २२४५ शतक १३ उद्देशक ७ भाषा जीव या अजीव ? १ प्रश्न - रायगिहे जाव एवं वयासी आया भंते ! भासा, -- १ उत्तर - गोयमा ! णो आया भासा, अण्णा भासा । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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