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भगवती सूत्र-श. १३ उ. ६ अभिचिकुमार का वैरानुबन्न
बोली कि-'हे स्वामिन् ! संयम में प्रयत्न करते रहें, यावत् प्रमाद नहीं करेंकह कर केशी राजा और पद्मावती रानी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दना-नमस्कार किया और अपने स्थान चले गये। उदायन राजा ने स्वयमेव पंचमुष्टिक लोच किया। शेष वृत्तान्त नौवें शतक के ३३ वें उद्देशक में कथित ऋषभदत्त के समान यावत् उदायन श्रमण समस्त दुःखों से रहित हुए।
अभीचिकुमार का वैरालुबन्ध
८-तएणं तस्स अभीइस्स कुमारस्स अण्णया कयाइ पुव्व. रत्तावरत्तकालसमयंसि कुटुंबजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूचे अन्झथिए जाव समुप्पजित्था-'एवं खलु अहं उदायणस्स पुत्ते पभावईए देवीए अत्तए, तएणं से उदायणे राया ममं अवहाय णियगं भाइणिजं केसिकुमारं रज्जे ठावेत्ता समणस्स भगवओ जाव पव्व. इए-इमेणं एयारूवेणं महया अप्पत्तिएणं मणोमाणसिएणं दुवखेणं अभिभूए समाणे अंतेउरपरियालसंपरिबुडे सभंडमत्तोवगरणमायाए वीतीभयाओ णयराओ णिग्गच्छड़, णिग्गच्छित्ता पुन्वाणुपुट्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइजमाणे जेणेव चंपा णयरी, जेणेव कूहिए राया, तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता कूणियं रायं उपसंपजिता णं विहरइ । तत्थ वि णं से विउलभोगसमिइसमण्णागए यावि होत्था। तएणं से अभीकुमारे समणोवासए यावि होत्था,
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