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भगवती सूत्र - १३.७६ उदयन नरेश की दीक्षा
से उदायण राया सयमेव पंचमुट्टियं लोयं० सेसं जहा उसभदत्तरस, जाव मही ।
कठिन शब्दार्थ - क्खिमणाभिसेयं निष्क्रमणाभिषेक, पियविप्पओगदूसहा प्रिय का वियोग दुम्ह, सेयापीयएहि श्वेत और पीत पडसाडगं पटशाटक (वस्त्र) घडियत्वं - युक्त करना, जोड़ना ( प्रयत्न करना ), णो पमाएयव्वं प्रमाद नहीं करें।
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भावार्थ ७ - उदायन राजा ने केशी राजा से दीक्षा लेने की आज्ञा मांगी। केशी राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और नौवें शतक के तेतीसवें उद्देश में कथित जमाली कुमार के समान यावत् निष्क्रमणाभिषेक ( दीक्षाभिषेक) करने लगा | अनेक गणनायक आदि परिवार से युक्त केशी राजा, उदायन राजा को उत्तम सिंहासन पर पूर्वदिशा सम्मुख बिठा कर एक सौ आठ स्वर्ण कलशों से अभिषेक करने लगा, इत्यादि जमाली के समान वर्णन कहना चाहिये । यावत् केशी राजा ने कहा- " हे स्वामिन् ! कहिये, हम क्या देवें, क्या अर्पण करें और आपका क्या प्रयोजन है ?" उदायन राजा ने केशी राजा से कहा कि"हे देवानुप्रिय ! कुत्रिकापण से रजोहरण और पात्र मंगवाओ ।" इत्यादि जमाली के वर्णनानुसार । विशेषता यह है कि जिसको प्रिय-वियोग दुस्सह है ऐसी पद्मावती राना ने उदायन राजा के अग्रकेशों को ग्रहण किया । इसके बाद केशी राजा ने दूसरी बार भी उत्तर दिशा में सिंहासन रखवा कर उदाजन राजा का श्वेत (चांदी) और पीत ( सोना) कलशों से अभिषेक किया । शेष सभी वर्णन जमाली समान जानना चाहिये, यावत् वह शिविका में बैठा । इसी प्रकार धाय माता के सम्बन्ध में भी जानना चाहिये । विशेषता यह है कि यहाँ पद्मावती रानी ने हंस चिन्ह वाले रेशमी वस्त्र को ग्रहण किया, इत्यादि शेष सभी उसी प्रकार, यावत् उदायन राजा शिविका से नीचे उतर कर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के समीप आया और तीन बार वन्दना - नमस्कार कर, उत्तरपूर्व दिशा की ओर जा कर स्वयमेव आभरण, माला और अलंकार उतारे, इत्यादि पूर्ववत् यावत् पद्मावती रानी ने आभरण आदि ग्रहण किये यावत् इस प्रकार
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