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भगवती सूत्र-स. १: 3.
उदायन नरेता चरित्र
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राजप्रश्नीय सूत्रानुसार यावत् 'कल्याण रूप फल और वृत्ति विशेष का अनुभव करते हुए रहते हैं'-तक कहना चाहिये । (वे स्थान विश्राम के लिए अस्थायी होते हैं) वहाँ वे लोग स्थायी निवाप्त नहीं करते । उनका निवास दूसरी जगह होता है । इसी प्रकार हे गौतम ! असुरेन्द्र, असुरराज चमर का चमरचञ्च नामक आवास, केवल क्रीड़ा और रति के लिए है। चमरेन्द्र वहाँ आकर क्रीड़ा और रति करता है । इसलिए हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि चमरेन्द्र चमरचंच आवास में निवास नहीं करता।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-ऐसा कहकर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं।' इसके बाद श्रमण भगवान् महावीर स्वामी किसी दिन राजगृह नगर और गुण-शील चैत्य से यावत् विहार कर देते है।
उदायन नरेश चरित्र
४-तणं कालेणं तेणं समएणं चंपा णामं णयरी होत्था, , वण्णओ । पुण्णभद्दे चेइए, वण्णओ। तएणं समणे भगवं महावीरे
अण्णया कयाइ पुव्वाणुपुलिं चरमाणे जाव विहरमाणे जेणेव चंपा णयरी जेणेव पुण्णभद्दे चेहए तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता जाव विहरड़ । तेणं कालेणं तेणं समएणं सिंधूसोवीरेसु जणवएसु वीतीभए णामं णयरे होत्था, वण्णओ। तस्स णं वीतीभयस्स णयरस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसिभाए एत्थ णं मियवणे णामं उजाणे होत्था, मन्योउय० वण्णओ। तत्थ णं वीतीभए णयरे
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