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________________ भगवती सूत्र-:. १३ उ. ४ लोक का मम एवं संक्षिप्त भाग २२२३ अनन्त जीव अवगाढ़ है। लोक का सम एवं संक्षिप्त भाग ४५ प्रश्न-कहि णं भंते ! लोए बहुसमे ? कहि णं भंते ! लोए सव्वविग्गहिए पण्णत्ते ? ४५ उत्तर-गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उवरिमहेडिल्लेसु खुड्डगपयरेसु एत्थ णं लोए बहुसम, एस्थ णं लोए सव्व विग्गहिए पण्णत्ते । ४६ प्रश्न-कहि णं भंते ! विग्गहविग्गहिए लोए पण्णत्ते ? ४६ उत्तर-गोयमा ! विग्गहकंडए, 'एत्थ णं विग्गहविग्गहिए लोए पण्णत्ते । कठिन शब्दार्थ-कहि-कहाँ, सव्वविग्गहिए-सर्व संक्षिप्त (सब से छोटा) विग्गहकंडए-विग्रहकण्डक । भावार्थ-४५ प्रश्न-हे भगवन् ! लोक का बहुसम भाग (अत्यन्त समप्रदेशों की वृद्धि-हानि से रहित) कहाँ है और लोक का सर्व संक्षिप्त भाग कहाँ कहा गया है ? . ४५ उत्तर-हे गौतम ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर और नीचे क्षुद्र (लघु) प्रतरों में लोक का बहुसम भाग कहा गया है और यहीं लोक का सर्व संक्षिप्त (सब से संकीर्ण)भाग कहा गया है । ४६ प्रश्न-हे भगवन् ! लोक का विग्रह-विग्रहिक भाग (लोक रूप शरीर का वक्रतायुक्त भाग) कहाँ कहा गया है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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