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________________ भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३२ गांगेय प्रश्न-प्रवेशनक ___ १६ प्रश्न- छन्भंते ! णेरइया णेरड्यप्पवेसणएणं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होजा-पुच्छा । __ १६ उत्तर-गंगेया ! रयणप्पभाए वा होजा, जाव अहेसत्तमाए वा होजा। _____ अहवा एगे रयणप्पभाए पंच सक्करप्पभाए होज्जा; अहवा एगे रयणप्पभाए पंच वालुयप्पभाए होज्जा, जाव अहवा एगे रयणप्पभाए पंच अहेसत्तमाए होज्जा । अहवा दो रयणप्पभाए चत्तारि सक्करप्पभाए होज्जा; जाव अहवा दो रयणप्पभाए चत्तारि अहे. सत्तमाए होजा । अहवा तिण्णि रयणप्पभाए तिण्णि सक्करप्पभाए, एवं एएणं कमेणं जहा पंचण्हं दुयासंजोगो तहा छण्ह वि भाणियव्वो, णवरं एक्को अन्भहिओ संचारेयव्वो, जाव अहवा पंच तमाए एगे अहेसत्तमाए होजा। कठिन शब्दार्थ-अन्महिओ-अधिक, संचारेयव्वो-गिनना चाहिए । भावार्थ-१६ प्रश्न-हे भगवन् ! छह नरयिक जीव, नैरयिक प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में उत्पन्न होते हैं, इत्यादि प्रश्न ।। १६ उत्तर-हे गांगेय ! वे रत्नप्रभा में होते हैं अथवा यावत् अधःसप्तम पथ्वी में होते हैं। (ये असंयोगी सात भंग होते हैं।) (द्विक संयोगी १०५ भंग)-(१) अथवा एक रत्नप्रभा में और पांच शर्कराप्रभा में होते हैं । (२) अथवा एक रत्नप्रभा में और पांच वालुकाप्रभा में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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