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'भगवती सूत्र-ग. ५. उ. ३२ गांगेय प्रश्न-प्रवेशनक
भंग होते हैं।) अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और एक वालुकाप्रभा में होता है । इस प्रकार एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तम पृथ्वी में होता है। (इस प्रकार १-२-१ के पांव भंग होते हैं ।) अथवा दो रत्नप्रभा में एक शर्कराप्रमा में और एक वालुकाप्रभा में होता है । इसी प्रकार यावत् दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तम पृथ्वी में होता है। (इस प्रकार २-१-१ के पांच भंग होते हैं। तीनों को मिलाकर पन्द्रह भंग होते है) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और दो पंकप्रभा में होते हैं । इस प्रकार यावत् एक रत्नप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और दो अधःसप्तम पृथ्वी में होते हैं। इसी अभिलाप द्वारा जिस प्रकार तीन नरयिकों के त्रिक संयोगी भंग कहे, उसी प्रकार चार नैरयिकों के भी त्रिक संयोगी भंग जानना चाहिये यावत् दो धूमप्रभा में एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तम पृथ्वी में होता है । (ये त्रिक संयोगी १०५ भंग हुए।)
अहवा एगे रयणप्पभाए एगे मक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए होज्जा १; अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए एगे धूमप्पभाए होजा २: अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए एगे तमाए होजा ३; अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होजा ४; अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए एगे पंकप्पभाए एगे धूमप्पभाए होजा ५; अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए एगे पंकप्पभाए एगे तमाए होजा ६; अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए
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