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________________ .१६२४ भगवती सूत्र-श. ९ ८. ३२ गांगेय प्रश्न-प्रवेशनक शर्कराप्रभा में । अथवा यावत् एक रत्नप्रमा में और दो अधःसप्तम पृथ्वी में होते हैं । (इस प्रकार १-२ का रत्नप्रभा के साथ अनुक्रम से दूसरी नरकों के साथ संयोग करने से छह भंग होते है।) अथवा दो नैरयिक रत्नप्रभा में और एक शर्कराप्रभा में उत्पन्न होता है। अथवा यावत् दो जीव रत्नप्रभा में और एक जीव अधःसप्तम पृथ्वी में होता है । (इस प्रकार २-१ के भी पूर्ववत् छह भंग होते हैं) अथवा एक शर्कराप्रभा में दो वालुकाप्रभा में होते हैं । अथवा यावत एक शर्कराप्रभा में और दो अध:सप्तम पृथ्वी में होते हैं । (इस प्रकार शर्कराप्रभा के साथ १-२ के पांच भंग होते हैं ।) अथवा दो शर्कराप्रभा में और एक वालुकाप्रभा में होता है । अथवा यावत् दो शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है । (इस प्रकार २-१ के पूर्ववत् पांच भंग होते हैं।) जिस प्रकार शर्कराप्रभा की वक्तव्यता कही, उसी प्रकार सातों नरकों की वक्तव्यता जाननी चाहिये। अथवा यावत् दो तमःप्रभा में और एक तमस्तमः प्रभा में होता है। यहां तक जानना चाहिये। अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक बालुकाप्रभा में होता है । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रमा में और एक पंकप्रभा में होता है, अथवा यावत् एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तम पृथ्वी में होता है। (इस प्रकार रत्नप्रभा के और शर्करापमा के साथ पांच विकल्प होते हैं) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में. और एक पंकप्रभा में होता है । अथवा एक रत्तप्रभा में, एक वालकाप्रभा में और एक धूमप्रभा में होता है। इस प्रकार यावत् अथवा एक रलप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और एक अधःसप्तम पृथ्वी में होता है। (इस प्रकार शर्कराप्रभा को छोड़ देने पर चार विकल्प होते हैं) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक धूमप्रभा में होता है, अथवा यावत् एक रत्नप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक अधःसप्तम पृथ्वी में होता है। (इस प्रकार वालुकाप्रमा को छोड़ देने पर तीन विकल्प होते हैं) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में होता है । अथवा एक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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