SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६१८ भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३२ गांगेय प्रश्न-प्रवेशनक हैं । इसलिये उनकी उत्पत्ति और उद्वर्तन सान्तर नहीं, निरन्तर होता है । एकंद्रियों के सिवाय शेष सभी जीवों की उत्पत्ति और मरण में अन्तर संभव है, इमलिये वे सान्तर और निरन्तर दोनों प्रकार से उत्पन्न होते हैं और मरते हैं। गांगेय प्रश्न-प्रवेशनक ९ प्रश्न-कइविहे णं भंते ! पवेसणए पण्णत्ते । ९ उत्तर-गंगेया ! चउविहे पवेसणए पण्णत्ते, तं जहा-णेरइय. पवेसणए, तिरिक्खजोणियपवेसणए, मणुस्सपवेसणए, देवपवेसणए । १० प्रश्न-णेरइयपवेसणए णं भंते ! कइविहे पण्णते ? १० उत्तर-गंगेया ! सत्तविहे पण्णत्ते, तें जहा-रयणप्पभापुढविणेरइयपवेसणए, जाव अहेसत्तमापुढविणेरइयपवेसणए। . ११ प्रश्न-एगे णं भंते ! णेरइए णेरइयपवेसणएणं पविसमाणे किं रयणप्पभाए होजा, सकरप्पभाए होजा, जाव अहे सत्तमाए होजा? ११ उत्तर-गंगेया ! रयणप्पभाए वा होजा, जाव अहेसत्तमाए वा होजा। . कठिन शब्दार्थ-पवेसणए-प्रवेशनक (एक गति से दूसरी गति में प्रवेश करना-जाना)। भावार्थ-९ प्रश्न-हे भगवन् ! प्रवेशनक (उत्पाद-उत्पत्ति) कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर-हे गांगेय ! प्रवेशनक चार प्रकार का कहा गया है। यथा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy