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भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३२ गांगेय प्रश्न-सान्तर निरन्तर उत्पत्ति आदि
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८ उत्तर-गंगेया ! संतरं पि जोइसिया चयंति, णिरंतरं पि जोइसिया चयंति; एवं जाव वेमाणिया वि ।
कठिन शब्दार्थ-उव्वटुंति--निकलते ।
भावार्थ-४ प्रश्न-हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, सान्तर उत्पन्न होते है, या निरन्तर ?
४ उत्तर-हे गांगेय ! पृथ्वीकायिक जीव, सान्तर उत्पन्न नहीं होते, निरन्तर उत्पन्न होते हैं । इस प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक जीवों तक जानना चाहिये । बेइंद्रिय जीवों से लेकर यावत् वैमानिक देवों तक, नरयिकों के समान जानना चाहिये ।
५ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिक जीव, सान्तर उद्वर्तते (मरते) हैं, या निरन्तर ?
५ उत्तर-हे गांगेय ! नरयिक जीव, साम्तर भी उद्वर्तते हैं और निरन्तर भी। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक जानना चाहिये ।
६ प्रश्न-हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव,सान्तर उद्वर्तते हैं,या निरन्तर?
६ उत्तर-हे गांगेय ! पृथ्वीकायिक जीव, सान्तर नहीं उद्वर्तते, किन्तु निरन्तर उद्वर्तते हैं। इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक जीवों तक जानना चाहिये-ये सान्तर नहीं, निरन्तर उद्वर्तते हैं
७ प्रश्न-हे भगवन् ! बेइंद्रिय जीव, सान्तर उद्वर्तते हैं, या निरन्तर ?
७ उत्तर-हे गांगेय ! बेइंद्रिय जीव, सान्तर भी उद्वर्तते है और निरन्तर भी। इसी प्रकार यावत् वाणव्यन्तर तक जानना चाहिये।
८ प्रश्न-हे भगवन् ! ज्योतिषी देव, सान्तर चवते हैं, या निरन्तर ?
८ उत्तर-हे गांगेय ! ज्योतिषी देव, सान्तर भी चवते हैं और निरन्तर भी। इसी प्रकार यावत् वैमानिक तक जानना चाहिये।
विवेचन--जीवों की उत्पत्ति आदि में समयादि काल का जो अन्तर (व्यवधान) होता है, वह 'सान्तर' कहलाता है। एकेन्द्रिय जीव प्रति-समय उत्पन्न होते है और मरते
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