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भगवती सूत्र - श. १ उ. ३२ गयि प्रश्न- सान्तर निरन्तर उत्पत्ति आदि १६१५
उववज्जति ?
२ उत्तर - गंगेया ! संतरं पि णेरड्या उववज्जेति णिरंतरं पि णेरड्या उववज्जति ।
३ प्रश्न - संतरं भंते! असुरकुमारा उववजंति, णिरंतरं असुरकुमारा उववज्जंति ?
३ उत्तर - गंगेया ! संतरं पि असुरकुमारा उववज्जंति, णिरंतरं पि असुरकुमारा उववज्जति, एवं जाव थणियकुमारा ।
कठिन शब्दार्थ- पासावच्चिज्जे- पाश्र्वापत्य-भगवान् पार्श्वनाथ के संतानिये ( शिष्यानुशिष्य), अदूरसामंते -थोड़ी दूर ( अति दूर व अति निकट नहीं), ठिच्चा -खड़े रहकर संतरं - अन्तर सहित ।
भावार्थ - १ उस काल उस समय में वाणिज्य-ग्राम नामक नगर था । (वर्णत) वहाँ दधुतिपलाश नामक चंत्य ( उद्यान ) था । वहाँ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे। परिषद् वन्दन के लिये निकली । भगवान् ने धर्मोपदेश दिया । परिषद् वापिस चली गई। उस काल उस समय में पुरुषादानीय भगवान् पारवनाथ के शिष्यानुशिष्य गांगेय नामक अनगार थे । वे जहाँ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी थे, वहाँ आये और श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के न अति समीप न अति दूर खड़े रहकर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से इस प्रकार पूछा२ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या नैरयिक सान्तर ( अन्तर सहित ) उत्पन्न होते हैं, या निरन्तर उत्पन्न होते हैं ?
२ उत्तर - हे गांगेय ! नरयिक, सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी । ३ प्रश्न - हे भगवन् ! असुरकुमार सान्तर उत्पन्न होते हैं, या निरन्तरं ? ३ उत्तर - हे गांगेय ! वे सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी । इस प्रकार यावत् स्तनितकुमार तक जानना चाहिये ।
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