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भगवती सूत्र - श. १२. उ. १० परमाणु आदि की सद्रूपता
सिए एवं जाव अनंतपएसिए ।
* सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरइ
॥ वारसमस दसमो उद्देसो समत्तो ॥
॥ समत्तं बारसमं सयं ॥
भावार्थ - २३ प्रश्न - हे भगवन् ! पञ्चप्रदेशी स्कन्ध आत्मा है या अन्य
है ?
२३ उत्तर - हे गौतम! पञ्चप्रदेशी स्कन्ध १ कथंचित् आत्मा है, २ कथंचित् नोआत्मा है, ३ आत्मा नोआत्मा रूप से कथंचित् अवक्तव्य है, ४-७ कथंचित् आत्मा, नोआत्मा है ( एकवचन बहुवचन आश्री ४ भंग ) ८-११ कथंचित् आत्मा और अवक्तव्य के चार भंग, १२-१५ कथंचित् नोआत्मा और अवक्तव्य के चार भंग, त्रिक संयोगी आठ भंग में से एक आठवाँ भंग घटित नहीं होता, अर्थात् सात भंग होते है । कुल मिलाकर बावीस भंग होते हैं ।
२४ प्रश्न - हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा गया है कि पञ्चप्रदेशी स्कन्ध आत्मा है, इत्यादि प्रश्न ।
२४ उत्तर - हे गौतम ! १ पञ्चप्रदेशी स्कन्ध अपने आदेश से आत्मा है, २ पर के आदेश से नोआत्मा है, ३ तदुभय के आदेश से अवक्तव्य है, एक देश के आदेश से सद्भाव पर्याय की अपेक्षा और एक देश के आदेश से असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से कथंचित् आत्मा है, कथंचित् नोआत्मा । इस प्रकार द्विक संयोगी सभी भंग पाये जाते हैं । त्रिसंयोगी आठ भंग होते हैं, उनमें से आठवाँ भंग घटित नहीं होता ।
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छह प्रदेशी स्कन्ध के विषय में ये सभी भंग घटित होते हैं। छह प्रदेशी स्कन्ध के समान यावत् अनन्त प्रदेशी तक कहना चाहिये ।
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