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________________ भगवती मूल-म. १२ उ. १० परमाण आदि की मद्पना २१२९ नो आत्माएँ और आत्मा नोआत्मा उभय रूप से अवक्तव्य है । १९ बहुत देशों के आदेश से सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से, एक देश के आदेश से असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से तदुभय पर्याय की अपेक्षा से चतुष्प्रदेशी स्कन्ध आत्माएँ, नोआत्मा और आत्मा नोआत्मा उभयरूप से अवक्तव्य है । इसलिये हे गौतम ! इस कारण ऐसा कहा जाता है कि चतुष्प्रदेशी स्कन्ध कथंचित् आत्मा है, कथंचित् नोआत्मा है और कथंचित् अवक्तव्य है । इस निक्षेप में पूर्वोक्त सभी भंग यावत् 'नोआत्मा है' तक कहना चाहिये । विवेचन-चतुष्प्रदेशी स्कन्ध में भी त्रिप्रदेशी स्कन्ध के समान जानना चाहिये । किन्तु यहाँ उन्नीस भंग बनते हैं। उनमें से तीन भंग सम्पूर्ण पन्ध्र की अपेक्षा से असंयोगी । होते हैं। बाद में बारह भंग द्विमं योगी होते हैं। ग्रंप चार भग त्रिसंयोगी होते हैं। २३ प्रश्न-आया भंते ! पंचपएसिए खंधे, अण्णे पंचपएसिए खंधे ? २३ उत्तर-गोयमा ! पंचपएमिए बंधे १ सिय आया २ सिय णो आया ३ सिय अवत्तव्यं आयाइ य णो आयाइ य ४-७ सिय आया य णो आया य, ८.११ सिय आया य अवत्तव्वं ४,१२-१५ णो आया य अवत्तव्वेण य ४, तियगसंजोगे एको ण पडइ । २४ प्रश्न-से केणट्टेणं भंते ! तं चेव पडिउच्चारेयव्वं ? २४ उत्तर-गोयमा ! १ अप्पणो आइढे आया २ परस्स आइटे णो आया ३ तदुभयस्स आइडे अवत्तव्वं ४ देसे आइढे सम्भावपजवे देसे आइटे असम्भावपज्जवे-एवं दुयगसंजोगे सब्बे पडंति तियगसंजोगे एको ण पडइ । छप्पएसियस्स सब्बे पडंति । जहा उप्पए. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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