________________
मगवती सूत्र-श. १२ उ. १० आत्मा का ज्ञान अज्ञान और दर्शन
२११५.
चारित्रात्मा और वीर्यात्मा का सम्बन्ध इस प्रकार है
जिस जीव के चारित्रात्मा होती है, उसके वीर्यात्मा अवश्य होती है। वीर्य के बिना चारित्र का अभाव है जिस जीव के वीर्यात्मा होती है, उसके चारित्रात्मा की भजना है, क्योंकि असंयत जीवों में वीर्यात्मा के होते हए भी चाग्विात्मा नहीं होती।
अल्प-वहत्व-इन आठ आत्माओं का अल्प-बहत्व इस प्रकार है। सबसे कम चारित्रात्मा है, क्योंकि चारित्रवान् जीव संख्यात ही है । चारित्रात्मा से ज्ञानात्मा अनन्त गुण है, क्योंकि सिद्ध और सम्यग्दृष्टि जीव चारित्री जीवों से अनन्त गुण हैं । ज्ञानात्मा से कपायात्मा अनन्तगुण है। क्योंकि सिद्ध जीवों की अपेक्षा कषायों के उदय वाले जीव अनन्तगुण है । कषायात्मा से योगात्मा विशेषाधिक है, क्योंकि योगात्मा में कषायात्मा तो सम्मिलित है ही और कषाय. रहित योग वाले जीवों का भी इसमें समावेश हो जाता है। योगात्मा से वीर्यात्मा विशषाधिक हैं. क्योंकि वीर्यात्मा में अयोगी गणस्थान वाली आत्माओं का समावेश है। उपयोगात्मा, द्रव्यात्मा और दर्शनात्मा-ये तीनों परस्पर तुल्य हैं । ये सभी सामान्य जीव रूप हैं, परन्तु वीर्यात्मा से विशेषाधिक हैं, क्योंकि इन तीन आत्माओं में वीर्यात्मा वाले संसारी जीवों के अतिरिक्त सिद्ध जीवों का भी समावेश होता है।
आत्मा का ज्ञान अज्ञान और दर्शन ७ प्रश्न-आया भंते ! णाणे अण्णाणे ?
७ उत्तर-गोयमा ! आया सिय णाणे सिय अण्णाणे, गाणे पुण णियमं आया ।
८ प्रश्न-आया भंते ! णेरइयाणं णाणे, अण्णे णेरइयाणं णाणे ?
८ उत्तर-गोयमा ! आया णेरइयाणं सिय णाणे, सिय अण्णाणे। णाणे पुण से णियमं आया, एवं जाव थणियकुमाराणं ।
९ प्रश्न-आया भंते ! पुढविकाइयाणं अण्णाणे, अण्णे पुढवि.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org