________________
भगवती सूत्र-शं. १२ उ. १० आत्मा के आठ मंद और उनका संबंध - २१११
या नहीं, इसका उत्तर निम्न प्रकार है:
जिस जीव के द्रव्यात्मा होती है, उसके पापात्मा होती भी हैं और नहीं भी होती। सकपायावस्था में द्रव्यात्मा के कषायात्मा होती है और उपशांत-कपाय और क्षीण कषायावस्था में द्रव्यात्मा के कषायात्मा नहीं होती। किन्तु जिस जीव के कषायात्मा होती है, उसके द्रव्यात्मा नियम से होती है। क्योंकि द्रव्यात्मत्व अर्थात् जीवत्व के विना कपायों का संभव
;
+
नहीं है ।
जिस जीव के द्रव्यात्मा होती है, उसके योगात्मा होती भी है और नहीं भी होती । सयोगी अवस्था में द्रव्यात्मा के योगात्मा होती है. किन्तु अयोगी अवस्था में द्रव्यात्मा के योगात्मा नहीं होती, परन्तु जिस जीव के योगात्मा होती है, उसके द्रव्यात्मा नियम से होती . है, क्योंकि द्रव्यात्मा जीव रूप है और जीव के बिना योगों का संभव नहीं है ।
जिस जीव के द्रव्यात्मा होती है, उसके उपयोगात्मा नियम से होती है । और जिसके उपयोगात्मा होती है, उसके द्रव्यात्मा नियम से होती है । द्रव्यात्मा और उपयोगात्मा का परस्पर नित्य सम्बन्ध हैं। सिद्ध और संसारी सभी जीवों के द्रव्यात्मा भी है ओर उपयोगात्मा भी है । क्योंकि द्रव्यांत्मा जीव रूप है और उपयोग उसका लक्षण है । इसलिए दोनों एक दूसरी में नियम में पाई जाती है ।
जिसके द्रव्यात्मा होती है, उसके ज्ञानात्मा की भजना है । क्योंकि सम्यग्दृष्टि द्रव्यात्मा के ज्ञानात्मा होती है और मिथ्यादृष्टि द्रव्यात्मा के ज्ञानात्मा (सम्यग्ज्ञान रूप ) नहीं होती, किन्तु जिसके ज्ञानात्मा है, उसके द्रव्यात्मा नियम से है । क्योंकि द्रव्यात्मा के बिना ज्ञानात्मा संभव ही नहीं है ।
जिसके द्रव्यात्मा होती है, उसके दर्शनात्मा नियम से होती है। जैसे कि सिद्ध भगवान् को केवल दर्शन होता है। जिसके दर्शनात्मा होती है, उसके द्रव्यात्मा नियम से होती हैं । जैसे चक्षुदर्शनादि वाले के द्रव्यात्मा होती है । द्रव्यात्मा और उपयोगात्मा के समान द्रव्यात्मा और दर्शनात्मा में भी नित्य सम्बन्ध है ।
जिसके द्रव्यात्मा होती है, उसके चारित्रात्मा की भजना है, क्योंकि विरति वाले द्रव्यात्मा में ही चारित्रात्मा पाई जाती है, विरति रहित संसारी जीव और सिद्ध नींवों में द्रव्यात्मा होने पर भी चारित्रात्मा नहीं पाई जाती। जिस जीव के चारित्रात्मा होती हैं, उसकै द्रव्यात्मा अवश्य होती है। क्योंकि द्रव्यात्मा के बिना चारित्र सम्भव ही नहीं ।
जिसके द्रव्यात्मा होती है, उसके वीर्यात्मा की भजना है, क्योंकि सकरण-अकरण वीर्ये रहित
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org