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भगवती सूत्र - ग. १२ उ. १० आत्मा के आट भेद और उनका संबंध
अनंत गुण है, उससे कषायात्मा अनंत गुणी है, उससे योगात्ना विशेषाधिक है, उससे वीर्यात्मा विशेषाधिक है, उससे उपयोगात्मा, द्रव्यात्मा और दर्शनात्मा ये तीनों विशेषाधिक हैं और ये तीनों परस्पर तुल्य हैं ।
विवेचन - जो निरन्तर दूसरी - दूसरी स्व-पर पर्यायों को प्राप्त करती रहती है, वह आत्मा है । अथवा जिसमें सदा उपयोग अर्थात् बोधरूप व्यापार पाया जाय, वह आत्मा है । उपयोग की अपेक्षा सामान्य रूप से सभी आत्माएं एक प्रकार की हैं, किन्तु विशिष्ट और उपाधि को प्रधान मानकर आत्मा के आठ भेद बतलाये गये हैं । वे इस प्रकार हैं; - १ द्रव्य आत्मा - त्रिकालवर्ती द्रव्यरूप आत्मा द्रव्यात्मा है । यह द्रव्यात्मा सभी जीवों के होती है ।
२ कषाय आत्मा - क्रोध, मान, माया, लोभरूप कषाय से युक्त आत्मा - कषायात्मा है । उपशान्त कषाय और क्षीण कषाय आत्माओं के सिवाय शेष सभी संसारी जीवों के यह आत्मा होती है ।
३ योग आत्मा- मन, वचन और काय के व्यापार को योग कहते हैं । इन योगों से युक्त आत्मा - योग- आत्मा कहलाती है। योग वाले सभी जीवों में यह आत्मा होती है । अयोगी केवली और सिद्धों के यह आत्मा नहीं होती ।
४ उपयोग आत्मा - ज्ञान और दर्शन रूप उपयोग प्रधान आत्मा उपयोग आत्मा है। उपयोगात्मा सिद्ध और संसारी सभी जीवों के होती है ।
५ ज्ञान आत्मा - विशेष अनुभव रूप सम्यग् ज्ञान से विशिष्ट आत्मा को ज्ञान आत्मा कहते हैं । ज्ञानात्मा सम्यग्दृष्टि जीवों के होती है ।
६ दर्शन आत्मा - सामान्य अवबोधरूप दर्शन से विशिष्ट आत्मा को दर्शनात्मा कहते हैं । दर्शनात्मा सभी जीवों के होती है ।
७ चारित्र आत्मा - चारित्र के विशिष्ट गुण से युक्त आत्मा को चारित्रात्मा कहते हैं । चारित्रात्मा विरति वालों के होती है ।
८ वीर्य आत्मा - उत्थानादि रूप कारणों से युक्त वीर्य विशिष्ट आत्मा को वीर्यात्मा कहते हैं । यह सभी संसारी जीवों के होती है। यहाँ वीर्य से 'सकरण अकरण वीर्य' लिया जाता है। सिद्धों में वीर्यात्मा नहीं मानी गई है। क्योंकि वे कृतकार्य हो चुके हैं, अर्थात् उन्हें कोई कार्य करना शेष नहीं रहा है ।
आत्मा के आठ भेदों में परस्पर क्या सम्बन्ध है? एक भेद में दूसरा भेद रहता है
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