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________________ २०९६ भगवती सूत्र - ग. १२ उ. ९ भव्यद्रव्यादि पाच प्रकार के देव विउव्विस्संति वा । २३ प्रश्न - भावदेवाणं पुच्छा । २३ उत्तर - जहा भवियदव्वदेवा । कठिन शब्दार्थ- हुतं - पृथक्त्व - अनेक । भावार्थ - २१ प्रश्न - हे भगवन् ! भव्यद्रव्यदेव एक रूप अथवा अनेक रूपों की विकुर्वणा करने में समर्थ है ? २१ उत्तर - हाँ गौतम ! भव्यद्रव्यदेव एक रूप और अनेक रूपों की विकुर्वणा करने में समर्थ है। एक रूप की विकुर्वणा करता हुआ एक एकेन्द्रिय रूप यावत् एक पञ्चेन्द्रियरूप की विकुर्वणा करता है । अथवा अनेक रूपों की विकुर्वणा करता हुआ अनेक एकेंद्रिय रूप यावत् अनेक पञ्चेन्द्रिय रूप विकुर्वणा करता है । वे रूप संख्यात या असंख्यात, सम्बद्ध या असम्बद्ध, समान या असमान होते हैं। उनसे वह अपना यथेष्ट कार्य करता है । इसी प्रकार नरदेव और धर्मदेव के विषय में भी समझना चाहिये । २२ प्रश्न - हे भगवन् ! देवाधिदेव एक रूप या अनेक रूपों की विकुर्वणा . करने में समर्थ है ? २२ उत्तर - हे गौतम ! एक रूप और अनेक रूपों की विकुर्वणा करने में समर्थ है । परन्तु उन्होंने ( शक्ति होते हुए भी उत्सुकता के अभाव से ) सम्प्राप्ति द्वारा कभी विकुर्वणा नहीं की, करते भी नहीं और करेंगे भी नहीं । २३ प्रश्न - हे भगवन् ! भावदेव एक रूप या अनेक रूपों की विकुर्वणा करने में समर्थ है ? २३ उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार भव्यद्रव्यदेव का कथन किया है, उसी प्रकार इनका भी जानना चाहिये । Jain Education International विवेचन-वे ही भव्यद्रव्यदेव ( - मनुष्य और तिर्यंच ) एक या अनेक रूपों की विकुर्वणा कर सकते हैं, जो वैक्रिय-लब्धि सम्पन्न हों | For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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