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भगवती सूत्र - श. १२ उ. ९ भव्यद्रव्यादि पांच प्रकार के देव
से समन्वित यावत् गुप्त ब्रह्मचारी हैं, वे 'धर्मदेव' कहलाते हैं । ५ प्रश्न - हे भगवन् ! 'देवाधिदेव' क्यों कहलाते हैं ?
५ उत्तर - हे गौतम ! उत्पन्न हुए केवलज्ञान और केवलदर्शन को धारण करने वाले यावत् सर्वदर्शी अरिहन्त भगवान् 'देवाधिदेव' कहलाते हैं । ६ प्रश्न - हे भगवन् ! 'भावदेव' किसे कहते हैं ?
६ उत्तर - हे गौतम ! भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देव, जो देवगति सम्बन्धी नामकर्म और गौत्र कर्म का वेदन कर रहे हैं, वे 'भावदेव' कहलाते है ।
विवेचन - जो क्रीड़ादि धर्म वाले हैं अथवा जिनकी आराध्यरूप से स्तुति की जाती है. वे 'देव' कहलाते हैं ।
भव्यद्रव्य देव में 'द्रव्य' शब्द अप्राधान्य वाचक है । भूतकाल में देव पर्याय को प्राप्त हुआ अथवा भविष्यत्काल में देवपने को प्राप्त करने वाले, किन्तु वर्तमान में देव के गुणों से शून्य होने के कारण वे अप्रधान हैं। इनमें से जो इस भव के बाद ही देवपने को प्राप्त करने वाले हैं, वे 'भव्यद्रव्यदेव' कहलाते हैं ।
मनुष्यों में देवों के समान आराधना करने के योग्य मनुष्येन्द्र- चक्रवर्ती ''नरदेव' कहलाते हैं ।
श्रुतादि धर्म द्वारा जो देव तुल्य हैं, अथवा जिनमें धर्म की ही प्रधानता है, ऐसे धार्मिक देवरूप अनगार 'धर्मदेव' कहलाते हैं ।
पारमार्थिक देवपना होने से जो देवों से भी अधिक श्रेष्ठ हैं, ऐसे तीर्थंकर भगवान् 'देवाधिदेव' अथवा 'देवातिदेव' कहलाते हैं ।
देवगत्यादि कर्म के उदय से देवपने का अनुभव करने वाले 'भावदेव' कहलाते हैं ।
७ प्रश्न - भवियदव्वदेवा णं भंते । कओहिंतो उववजंति, किं णेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्ख० मणुस्त० देवेहिंतो उववजंति ? ७ उत्तर - गोयमा ! रइए हिंतो उववनंति, तिरि० मणु० देवे
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