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भगवती सूत्र-श. १. उ. . भव्यद्रव्यादि पांच प्रकार के देव
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५ उत्तर-गोयमा ! जे इमे अरिहंता भगवंतो उप्पण्णणाणदसणधरा जाव सव्वदरिसी, से तेणटेणं जाव 'देवाहिदेवा देवाहि. देवा'।
६ प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-'भावदेवा भावदेवा' ?
६ उत्तर-गोयमा ! जे इमे भवणवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया देवा देवगड़णामगोयाई कम्माई वेदेति, से तेणटेणं जाव 'भावदेवा भावदेवा'।
कठिन शब्दार्थ-पवणिहिपइणो-नवनिधि पति-नवनिधियों के स्वामी । भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! देव कितने प्रकार के कहे हैं ?
१ उत्तर-हे गौतम ! देव पांच प्रकार के कहे हैं । यथा-भव्यद्रव्यदेव, नरदेव, धर्मदेव, देवाधिदेव और भावदेव ।
२ प्रश्न-हे भगवन् ! 'भव्यद्रव्य देव'-ऐसा कहने का कारण क्या है ?
२ उत्तर-हे गौतम ! जो पञ्चेन्द्रिय-तिर्यञ्च-योनिक अथवा मनुष्य, देवों में उत्पन्न होने योग्य (भव्य) हैं, वे 'भव्य द्रव्यदेव' कहलाते हैं।
३ प्रश्न- हे भगवन् ! 'नरदेव' क्यों कहलाते हैं ? __ ३ उत्तर-हे गौतम ! जो राजा, पूर्व, पश्चिम और दक्षिण में समुद्र तथा उत्तर में हिमवान् पर्वत पर्यन्त छह खण्ड पृथ्वी के स्वामी चक्रवर्ती हैं। जिनके यहाँ समस्त रत्नों में प्रधान चक्ररत्न उत्पन्न हुआ है, जो नवनिधि के स्वामी हैं, समृद्ध भण्डार वाले हैं, बत्तीस हजार राजा जिनका अनुसरण करते हैं, ऐसे महासागर रूप उत्तम मेखला पर्यन्त पृथ्वी के पति और मनुष्येन्द्र हैं, वे 'नरदेव' कहलाते हैं।
४ प्रश्न-हे भगवन् ! 'धर्मदेव' क्यों कहलाते हैं ? ४ उत्तर-हे गौतम ! जो ये अनगार भगवान ईर्यासमिति आदि समितियों
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