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भगवती सूत्र-श. १२ उ. ८ जीव का नागादि में उपपात
प्रकार पूछा-हे भगवन् ! महाऋद्धिवाला, यावत् महासुखवाला देव चवकर (मरकर) तुरन्त ही केवल दो शरीर धारण करने वाले नागों में (सर्प अथवा हाथी में) उत्पन्न होता है ?
१ उत्तर-हां गौतम ! उत्पन्न होता है।
२ प्रश्न-हे भगवन् ! वह वहां नाग के भव में अचित, वन्दित, पूजित, सत्कारित, सम्मानित, दिव्य, प्रधान, सत्य, सत्यावपातरूप एवं तन्निहित प्रातिहारिक होता है ?
२ उत्तर-हां, गौतम ! होता है ।
३ प्रश्न-हे भगवन् ! वहां से चवकर अन्तर रहित वह मनुष्य होकर सिद्ध, बुद्ध होता है, यावत् संसार का अन्त करता है ?
३ उत्तर-हां, गौतम ! वह सिद्ध बुद्ध होता है, यावत् संसार का अन्त . करता है।
४ प्रश्न-हे भगवन् ! महद्धिक यावत् महासुख वाला देव, दो शरीर ' वाली मणियों में उत्पन्न होता है ?
४ उत्तर-हां, गौतम ! नागों की तरह पूरा वर्णन करना चाहिये । . ५ प्रश्न-हे भगवन् ! महद्धिक यावत् महासुख वाला देव दो शरीर धारण करने वाले वृक्षों में उत्पन्न होता है ?
५ उत्तर-हां, गौतम ! होता है, पूर्ववत् । परन्तु इतनी विशेषता है कि जिस वृक्ष में वह उत्पन्न होता है, वह वृक्ष सन्निहित प्रातिहारिक होता है, तथा उस वृक्ष की पीठिका (चबुतरा आदि) गोबरादि से लीपी हुई और खड़िया मिट्टी आदि द्वारा पोती हुई होती है। शेष पूर्ववत्, यावत् वह संसार का अन्त करता है।
६ प्रश्न-हे भगवन् ! वानवृषभ (बड़ा बन्दर) कुक्कुट-वृषभ (बड़ा कूकड़ा) मंडूक-वृषभ (बड़ा मेंढक) ये सभी शील रहित, व्रत रहित, गुण रहित, मर्यादा रहित, प्रत्याख्यान पौषधोपवास रहित, काल के समय काल करके इस
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