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________________ भगवती सूत्र-श. १० उ. ८ देव का नागादि में उपपात २०८३ सण्णिहियपाडिहेरे लाउल्लोइयमहिए यावि भवेज्जा ? हंता भवेजा, सेसं तं चेव जाव अंतं करेजा। ६ प्रश्न-अह भंते ! गोलंगूलवसभे, कुक्कुडवसभे, मंडुकवसभेएए णं णिस्सीला णिव्वया णिग्गुणा णिम्मेरा णिप्पञ्चक्खाणपोसहोववामा कालमामे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोमेणं सागरोवमटिड़यंसि णरयंसि गेरइयत्ताए उववज्जेजा ? ६ उत्तर-समणे भगवं महावीरे वागरेइ-'उववजमाणे उववण्णे त्ति वत्तव्वं सिया । ७ प्रश्न-अह भंते ! सीहे वग्घे जहा उस्स(ओस)प्पिणीउद्देसए जाव परस्मरे-एए णं णिस्सीला० ? ७ उत्तर-एवं चेव जाव वत्तव्वं सिया । ८ प्रश्न-अह भंते ! ढंके कंक विलए मग्गुए सिखी-एए णं णिस्सीला०? ८ उत्तर-सेसं तं चैव जाव वत्तव्वं सिया । ® सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरइ ॐ ॥ अट्ठमो उद्देसो समत्तो ॥ कठिन शब्दार्थ-गोलंगूलवसभे--गोलांगुल वृषभ-बड़ा बन्दर । ढंके--कौआ । कंके-गिद्ध । विलए--विलक-एक पक्षी । सिखी-शिखी-मोर।। भावार्थ-१ प्रश्न-उस काल उस समय में गौतम स्वामी ने यावत् इस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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