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________________ भगवती सूत्र - श. १२ उ ७ जीवों का अनंत जन्म-मरण चाहिये । किन्तु वहाँ देवीपने उत्पन्न नहीं हुआ । इसी प्रकार सभी जीवों के विषय में जानना चाहिए । इसी प्रकार यावत् आनत, प्राणत, आरण और अच्युत तक जानना चाहिये । २०७९ १३ प्रश्न - हे भगवन् ! यह जीव तीन सौ अठारह ग्रैवेयक विमानावासों में से प्रत्येक विमानावास में पृथ्वीकायिक के रूप में यावत् उत्पन्न हो चुका है ? १३ उत्तर - हाँ, गौतम ! पूर्ववत् उत्पन्न हो चुका है । १४ प्रश्न - हे भगवन् ! यह जीव पांच अनुत्तर विमानों में से प्रत्येक विमान में पृथ्वीकायिक के रूप में यावत् पहले उत्पन्न हो चुका है ? १४ उत्तर - हाँ, गौतम ! अनेक बार या अनन्त बार उत्पन्न हो चुका है, किन्तु वहाँ देव और देवी रूप से उत्पन्न नहीं हुआ । इसी प्रकार सभी जीवों के विषय में जानना चाहिये । विवेचन - पृथ्वी कायिका वास असंख्यात हैं । किन्तु उनकी बहुलता बतलाने के लिये 'सयसम्म ( शतसहस्र - लाख ) ' शब्द का प्रयोग किया है । पहले और दूसरे देवलोक तक ही देवियां उत्पन्न होती हैं, इसलिये उससे आगे के देवलोकों में देवीपने उत्पन्न होने का निषेध किया है । अनुत्तर विमानों में तो कोई भी जीव, देव रूप मे अनन्त बार उत्पन्न नहीं हो सकता । और देवियों की उत्पत्ति तो वहाँ है ही नहीं । इसलिये अनुत्तर विमानों में देवपने और देवीपने अनन्तवार उत्पन्न होने का निषेध किया गया है। Jain Education International १५ प्रश्न - अयं णं भंते! जीवे सव्वजीवाणं माइत्ताए, पिड़त्ताए, भाइत्ताए, भगिणित्ताए, भज्जत्ताए, पुत्तत्ताए, घूयत्ताए, सुन्हताए उववण्णपुब्वे ? १५ उत्तर - हंता गोमा ! असई, अदुवा - अनंतखुत्तो । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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