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२०७८
भगवती सूत्र-ग. १२ उ. 3 जीवों का अनंत जन्म-मरण
मेगंसि अणुत्तरविमाणंसि पुढवि० ?
__१४ उत्तर-तहेव जाव अणंतखुत्तो, णो चेव णं देवत्ताए वा देवित्ताए वा, एवं सव्वजीवा वि ।
भावार्थ-१० प्रश्न-हे भगवन् ! यह जीव असंख्यात लाख पृथ्वीकायिक आवासों में से प्रत्येक पृथ्वीकायिकावास में पृथ्वीकायिकपने यावत् वनस्पतिकायिक रूप में उत्पन्न हो चुका है ?
१० उत्तर-हाँ, गौतम ! अनेक बार या अनंत बार उत्पन्न हो चुका है। इसी प्रकार सभी जीवों के लिये भी कहना चाहिये । इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिकों में भी कहना चाहिये।
११ प्रश्न-हे भगवन् ! यह जीव असंख्यात लाख बेइन्द्रियावासों में से प्रत्येक बेइन्द्रियावास में पृथ्वीकायिकपने यावत् वनस्पतिकायिकपने और बेइन्द्रिय के रूप में पहले उत्पन्न हो चुका है ?
११ उत्तर-हाँ, गौतम ! अनेक बार या अनंत बार उत्पन्न हो चुका है। इसी प्रकार सभी जीवों के विषय में भी कहना चाहिये, परन्तु इतनी विशेषता है कि तेइन्द्रियों में यावत् वनस्पतिकायिकपने और तेइन्द्रियपने, चौइन्द्रियों में यावत् चौइन्द्रियपने, पञ्वेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिकों में यावत् पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकपने और मनुष्यों में यावत् मनुष्यपने उत्पत्ति जाननी चाहिये । शेष सभी बेइन्द्रियों के समान कहना चाहिये। जिस प्रकार असुरकुमारों के विषय में कहा है, उसी प्रकार वाणव्यन्तर, ज्योतिषी, सौधर्म और ईशान देवलोक तक कहना चाहिये।
१२ प्रश्न-हे भगवन् ! यह जीव सनत्कुमार देवलोक के बारह लाख विमानावासों में से प्रत्येक विमानावास में पृथ्वीकायिकपने यावत् पहले उत्पन्न हो चुका है ?
१२ उत्तर-हाँ, गौतम ! सब कथन असुरकुमारों के समान जानना
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