SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 520
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र - ग. १२ उ. ७ जीवों का अनन्त जन्म-मरण ९ प्रश्न- अयं र्ण भंते! जीवे चउसट्टीए असुरकुमारावासस्यसहस्से एगमेगंस असुरकुमारावासंसि पुढविनकाइयत्ताए जाव वणस्सइकाइयत्ताए देवत्ताए देवित्ताए आसण-सयण-भंडमत्तोवगरणता ववण्णवे ? ९ उत्तर - हंता गोयमा ! जाव अनंतखुत्तो। सव्वजीवा वि णं भंते ! एवं चेव, एवं जाव थणियकुमारेसु । णाणत्तं आवासेसु, आवासा पुव्वभणिया । कठिन शब्दार्थ - असई - अमकृत अनेक वार, अनंतक्खुत्तो - अनन्त बार । भावार्थ - ३ प्रश्न - हे भगवन् ! पृथ्वियाँ कितनी कही है ? २०७५ ३ उत्तर - हे गौतम! पृथ्वियाँ सात कही हैं । यहाँ प्रथम शतक के पांचवें उद्देशक में कहे अनुसार नरकादि के आवास कहने चाहिये। इसी प्रकार यावत् अनुत्तरविमान यावत् अपराजित और सर्वार्थसिद्ध तक कहना चाहिये । ४ प्रश्न - हे भगवन् ! यह जीव, इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से प्रत्येक नरकावास में, पृथ्वीकायिकपने यावत् वनस्पतिकायिकपने, नरकपने (नरकावास पृथ्वीकायिकरूप) और नैरयिकपने, पहले उत्पन्न हुआ है ? ४ उत्तर - हाँ, गौतम ! अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न हो चुका है। ५ प्रश्न - हे भगवन् ! सभी जीव, इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से प्रत्येक नरकावास में पृथ्वीकायिकपने यावत् वनस्पतिकायिकपने, नरकपने और नैरयिकपने, पहले उत्पन्न हो चुके हैं ? Jain Education International ५ उत्तर - हाँ, गौतम ! अनेक बार अथवा अनन्त बार उत्पन्न हो चुके हैं। ६ प्रश्न - हे भगवन् ! यह जीव, शर्कराप्रभा के पच्चीस लाख नरकावासों में से प्रत्येक नरकावास में, पृथ्वीकायिकपने यावत् वनस्पतिकायिकपने यावत For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy