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________________ २०६० भगवती सूत्र-श. १२ उ. : चन्द्रमा को राहु ग्रसता है ? क्या जगत कर्मों से विविध रूपों को प्राप्त होता है ? और बिना कर्मों के प्राप्त नहीं होता? १९ उत्तर-हां, गौतम ! कर्म से जीव और जगत् (जीवों का समूह) विविध रूपों को प्राप्त होते हैं, किन्तु कर्मों के बिना विविध रूपों को प्राप्त नहीं होते हैं। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-ऐसा कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन-जीव नरक, तिर्यच, मनुष्य और देवगति में जिन विविध रूपों को प्राप्त होता है, वह सभी कर्मों के उदय से प्राप्त होता है, बिना कर्मों के जीव विभिन्न रूपों को धारण नहीं कर सकता । सुख-दुःख, सम्पन्नता-विपन्नता, जन्म-मरण, रोग-शोक, संयोगवियोग, आदि परिणामों को जीव स्वकृत कर्मों के उदय से भोगता है। ॥ बारहवें शतक का पांचवाँ उद्देशक सम्पूर्ण । शतक ११ उद्देशक चन्द्रमा को राहु ग्रसता है ? १ प्रश्न-रायगिहे जाव एवं वयासी-बहुजणे णं भंते ! अप्ण मण्णस्स एवमाइक्खइ जाव एवं परूवेइ-एवं खलु राहू चंदं गेण्हइ, एवं०, से कहमेयं भंते ! एवं ? १ उत्तर-गोयमा ! जण्णं से बहुजणे अण्णमण्णस्स० जाव मिच्छते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि, जाव एवं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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