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भगवती सूत्र - श. १२ उ. ८ परमाणु और स्कन्ध के विभाग
एक ओर एक परमाणु- पुद्गल, एक ओर द्विप्रदेशी स्कन्ध और एक ओर एक असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध होता है, यावत् एक ओर एक परमाणु-पुद्गल, एक ओर दस प्रदेशी स्कन्ध और एक ओर एक असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध होता है, अथवा एक ओर एक परमाणु- पुद्गल, एक ओर एक संख्यात प्रदेशी स्कन्ध और एक ओर एक असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध होता है, अथवा एक ओर एक परमाणु-पुद्गल और एक ओर दो असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध होते हैं, अथवा एक ओर एक द्विप्रदेशी स्कन्ध और एक ओर दो असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध होते हैं । इस प्रकार यावत् एक ओर एक संख्यात प्रदेशी स्कन्ध और एक ओर दो असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध होते हैं, अथवा तीन असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध होते हैं ।
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चहा कज्जमाणे एगयओ तिष्णि परमाणुपोग्गला, एगयओ असंखेज्जपएसिए खंधे भवइ, एवं चउक्कगसंजोगो, जाव दसगसंजोगो, एए जहेव संखेज्जपएसियस्स, णवरं असंखेज्जगं एगं अहिगं भाणियव्वं, जाव अहवा दस असंखेज्जपए सिया संधा भवंति ।
भावार्थ - जब उसके चार विभाग किये जाते हैं, तो एक ओर पृथक्पृथक् तीन परमाणु-पुद्गल और एक ओर एक असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध होता है, इस प्रकार चार संयोगी यावत् दस संयोगी तक जानना चाहिये । इन सब का कथन संख्यात प्रदेशी के अनुरूप जानना चाहिये, परन्तु एक 'असंख्यात ' शब्द अधिक कहना चाहिये, यावत् अथवा दस असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध होते हैं ।
संखेज्जहा कज्जमाणे एगयओ संखेज्जा परमाणुपोग्गला, एगयओ असंखेज्जप एसिए खंधे भवइ, अहवा एगयओ संखेज्जा दुपएसिया खंधा, एगयओ असंखेज्जपए सिए खंधे भवइ; एवं जाव
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