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२०२४ भगवती सूत्र - श. १२ उ. ४ परमाणु और स्कन्ध के विभाग
है, अथवा एक ओर पृथक्-पृथक् आठ परमाणु- पुद्गल, एक ओर एक द्विप्रदेश M स्कन्ध और एक ओर संख्यात प्रदेशी स्कन्ध होता है । इस क्रम से एक-एक की संख्या बढ़ाते जाना चाहिये, यावत् एक ओर एक दस प्रदेशी स्कन्ध और एक ओर नौ संख्यात प्रदेशी स्कन्ध होते हैं, अथवा दस संख्यात प्रदेशी स्कन्ध होते हैं । जब उसके संख्यात विभाग किये जाते हैं तो पृथक्-पृथक् संख्यात परमाणुपुद्गल होते हैं ।
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विवेचन-संख्यात प्रदेशी स्कन्ध में पहले ग्यारह कहकर फिर दस-दस बढ़ाना चाहिये । इस प्रकार इसके कुल ४६० भंग होते हैं । यथा - दो संयोगी ११, तीन संयोगी २१, चार संयोगी, ३१, पाँच संयोगी ४१, छह संयोगी ५१, सात संयोगी ६१, आठ संयोगी ७१. नौ संयोगी ८१, दस संयोगी ९१, और संख्यात संयोगी १ । इस प्रकार कुल ४६० भंग होते हैं ।
११ प्रश्न - असंखेज्जा णं भंते ! परमाणुपोग्गला एगयओ साहणंति, एगयओ साहणित्ता किं भवइ ?
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११ उत्तर - गोयमा ! असंखेज्जपए सिए खंधे भवइ, से भिज्ज - माणे दुहा वि; जाव दसहाऽ वि, संखेज्जहाऽ वि, असंखेज्जहाऽ वि कज्जइ । दुहा कजमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले एगयओ असंखेज्जपएसिए खंधे भवइ जाव अहवा एगयओ दसपएसिए खंधे भवs: एगयओ असंखिजपए सिए खंधे भवइ; अहवा एगयओ संजर सिए खंधे, एगयओ असंखेज्जपए सिए खंधे भवड़, अहवा दो असंखेज्जपएसिया खंधा भवंति ।
भावार्थ - ११ प्रश्न - हे भगवन् ! असंख्यात परमाणु- पुद्गल मिलकर क्या बनता है ?
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