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भगवती सूत्र-श. १२ उ. २ जयन्ती श्रमणोपरासिका के प्रश्न
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सम्प्राप्ति कर लेते हैं। जिन पत्थरों को प्रतिमापन को सम्प्राप्ति नहीं होती, इतने मात्र में उनमें प्रतिमापन की अयोग्यता नहीं होती, किन्तु तथाविध मंयोग न मिलने से वे प्रतिमापन की सम्प्राप्ति नहीं कर सकते । यही बात भवसिद्धिक जीवों के लिये भी ममझनी चाहिये।
जाग्रत जीव ही सिद्धि को प्राप्त होते हैं. इसलिये इसके आगे मुप्त-जाग्रत विषयक प्रश्न किया गया है । अधर्मी जीव सोते हुए अच्छे हैं और धर्मी पुरुष जागते हुए अच्छे हैं । क्योंकि ये दोनों इन अवस्थाओं में प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों को दुःख शोक और परिताप नहीं पहुंचाते ।
८ प्रश्न-बलियत्तं भंते ! साह, दुब्बलियत्तं साहू ?
८ उत्तर-जयंती ! अत्थेगइयाणं जीवाणं बलियत्तं साहू , । अत्यंगइयाणं जीवाणं दुबलियत्तं साहू । ... प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जाव साहू ?
उत्तर-जयंती ! जे इमे जीवा अहम्मिया जाव विहरति एएसि णं जीवाणं दुब्बलियत्तं साहू । एए णं जीवा एवं जहा सुत्तस्स तहा दुबलियत्तस्स वत्तव्वया भाणियव्वा । बलियस्स जहा जाग. रस्स तहा भाणियव्वं, जाव संजोएत्तारो भवंति, एएसि णं जीवाणं बलियत्तं साहू, से तेणटेणं जयंती ! एवं वुच्चइ-तं चेव जाव साहू ।
९ प्रश्न-दक्खत्तं भंते ! साहू, आलसियत्तं साहू ? + कुछ पूर्वाचार्य यहां 'जाति-भव्य' की कल्पना करते हैं। वे मानते हैं कि जीवों का एक वर्ग
ऐसा है जो जाति से ही भवसिद्धिक हैं, वे कभा सिद्ध नहीं होंगे। किन्तु मूलपाठ में सभी भव्य जीवों के सिद्ध होने का उल्लेख है । अतएव यह जाति भव्य भेद समझ में नहीं आता । दुर्भव्य हो सकते हैं । जातिभव्य-जो कमी सिद्ध नहीं हो-मानने पर तो वे भी अभव्य के समान होंगे और सभी भव्यों के मक्त होने के बाद मक्तिगमन रुकने का प्रश्न उत्पन्न हो जायेगा। अतएव सूत्रोक्त समाधान ही ठीक लगता है-डोशी
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