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भगवती सूत्र-स. ११ उ. १२ श्रमणोपासक ऋषिभद्रपुत्र की धर्मचर्चा
पूर्व का ज्ञान पढ़ा । सम्पूर्ण बारह वर्ष तक श्रमण-पर्याय का पालन किया यावत् समस्त दुःखों से रहित हुए।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-ऐसा कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं।
विवेचन-शंका-चौदह पूर्वधारी जीवों का जघन्य उपपात छठे लान्तक देवलोक तक कहा गया है, यहां महावल अनगार ने भी चौदह पूर्व का ज्ञान पढ़ा था, फिर उनका उपपात पांचवें ब्रह्मदेवलोक में ही कैसे हुआ ?
समाधान-शंका उचित है, किन्तु उस समय चौदह पूर्व के ज्ञान में से कुछ ज्ञान विस्मृत हो जाना अथवा चौदह पूर्व में कुछ कम ज्ञान होना सम्भव है, उन्हें परिपूर्ण चौदह पूर्व का ज्ञान नहीं हुआ था।
॥ ग्यारहवें शतक का ग्यारहवां उद्देशक सम्पूर्ण ।।
शतक ११ उद्देशक १२
श्रमणोपासक ऋषिभद्रपुत्र की धर्मचर्चा - १ तेणं गणं आलभिया णामं णयरी होत्था । वण्णओ।
• गालभियाए णय. रीए वहवे जान अप
समणोव
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