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________________ १९५० भगवती सूत्र-श. ११ उ. ११ महाबल चरित्र गप्पवराई बत्तीसवघेणं णाडएणं, अट्ट आसे आसप्पवरे, सव्वरयणामए, सिरिघरपडिरूवए, अट्ट हत्थी हथिप्पवरे, सव्वरयणामए सिरिघरपडिरूवए, अट्ठ जाणाई जाणप्पवराई, अट्ठ जुगाई जुगप्पवराई. एवं सिबियाओ, एवं संदमाणीओ, एवं गिल्लीओ थिल्लीओ, अट्ट वियडजाणाई वियडजाणप्पवराई, अट्ट रहे पारिजाणिए, अट्ठः रहे संगामिए, अट्ठ आसे आसप्पवरे, अट्ट हत्थी हत्थिप्पवरे, अट्ठ गामे गामप्पवरे, दसकुलसाहस्सिएणं गामेणं, अट्ठ दासे दासप्पवरे, एवं चेव दासीओ, एवं किंकरे, एवं कंचुइज्जे, एवं वरिसधरे, एवं महत्तरए, अट्ट सोवण्णिए ओलंबणदीवे, अट्ठ रूप्पामए ओलंबणदीवे, अट्ठ सुवण्णरूप्पामए ओलंवणदीवे, अट्ठ सोवण्णिए उपकंचणदीवे, एवं चेव तिण्णि वि अट्ठ सोवण्णिए पंजरदीवे एवं चेव तिण्णि वि । कठिन शब्दार्थ-मउडे-मुकुट, कडगजोए-कड़ों की जोड़ी, किकरे-अनुचर, कंचुहज्जेद्वारपाल (प्रतिहार) महत्तरए-अन्तःपुर के कार्य के विचारक, परिसधरे-अन्तःपुर रक्षक, कृत नपुंसक। भावार्थ-३२-विवाहोपरान्त महाबलकुमार के माता-पिता ने अपनी आठों पुत्रवधुओं के लिए प्रीतिदान दिया। यथा-आठ कोटि हिरण्य (चांदी के सिक्के), आठ कोटि सौनया (सोने के सिक्के), आठ श्रेष्ठ मुकुट, आठ श्रेष्ठ कुण्डलयुगल, . आठ उत्तम हार, आठ उत्तम अर्द्ध हार, आठ उत्तम एकसरा हार, आठ मुक्तावली हार, आठ कनकावली हार, आठ रत्नावली हार, आठ उत्तम कड़ों की जोड़ी, आठ उत्तान त्रुटित (बाजुबन्द) की जोड़ी, उत्तम आठ रेशमी वस्त्र युगल, आठ उत्तम सूती वस्त्रयुगल, आठ टसर वस्त्र युगल, आठ पट्ट युगल, आठ दुकूल युगल, आठ श्री, आठही, आठ घी, आठ कोति, आठ बुद्धि और आठ लक्ष्मी देवियों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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